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व्यापार ।
११.
समयमै यहाँकी शिल्पकारीकी वस्तुएँ संसारमें सर्वत्र बिकती थीं । उनकी कारीगरी की बगदाद के हारूँ रशीद के दरबार में कदर होती थी और उन्होंने प्रतापी शार्लमेंन और उसके दरबारियोंको आश्चर्यचकित किया था । एक अँगरेजी कवि लिखता है कि वे लोग अपनी आँखें फाड़ फाड़ कर बड़े आश्चर्य से रेशमी तथा कारचोबीके उन वस्त्रों तथा रत्नोंको देखते थे जो कि पूरबके दूर देशसे यूरोपके नवीन बाजारों में आते थे । "
भारतीय कारीगरीकी प्रशंसा में वेन्स साहबने लिखा है :- " ढाकेका बना हुआ कपड़ा, देखने पर मालूम होता है कि मानो उसे देवता ओंने बनाया है । उसे देख कर यह नहीं मालूम होता कि वह मनुश्योंका बनाया हुआ है । "
देशी वस्त्रोंकी सूक्ष्मताका वर्णन करते हुए " शिशुपालवध " काव्य में महाकवि माघने एक जगह लिखा है
" छिन्नेष्वपि स्पष्टतरेषु यत्र स्वच्छानि नारीकुचमंडलेषु आकाशसाम्यं दधुरम्बराणि न नामतः केवलमर्थतोपि । "
ढाकेकी मलमलका १० गज लम्बा, १ हाथ चौड़ा थान तौलने पर सिर्फ तोले ४ माशे बजनका निकला । वह थान घड़ी करक अँगूठी के छिद्र में से भली प्रकार आरपार हो जाता था । एक कारी - गरने अकबर बादशाहको मलमलका एक थान एक छोटीसी बाँसकी नली में रख कर नजर किया था । वह थान इतना बड़ा था कि उससे अम्बारी सहित सारा हाथी ढाँका जा सकता था । पहले दिल्लीदरबार में ढाकेसे सूत भेजा गया था; उस १५० हाथ लम्बे सूतका वजन केवल १ रत्ती था । ढाकेके रेजिडेण्ट साहबने १८४६ ई० में एक किताब लिखी थी । उसमें आव सेर रुईसे बने हुए २५० मील
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