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व्यापार।
कम हो गया, सो नहीं । भारतीय व्यापार कम हो गया-विदेशी भारतके व्यापारी बन गये । पूर्वापक्षा अब व्यापारमें उन्नति है, पर भारतको उससे अत्यन्त हानि है ! व्यापारमें वृद्धि है, पर भारतकी उसमें एक फूटी कौड़ी भी नहीं । रेल, तार, ट्राम, सोना, चाँदी, मिट्टीका तेल, कोयला, सन, ऊन, नील, चाय, कहवा, कागज आदिके कारखाने सभी विदेशियोंके हैं । यदि ये ही कारखाने भारतीयोंके होते तो आज इस प्रकार भारत दुर्भिक्षके फन्दे में न फँसता। यदि भारतीय कुछ कर रहे हैं तो दलाली मात्र । कारखानोंके मालिक प्रायः अँगरेज हैं । उनमें आटा पीसना, रूई दबाना, मशीनें पोंछना प्रभृति कार्य हम अल्प वेतन पर करते हैं और करोड़ों रुपयोंका लाभ उठाते हैं वे । भारतमें जिन अँगरेजोंने कारखाने खोल रखे हैं वे बहुत लाभ उठाते हैं । वे काम भी खूब लेते हैं, क्योंकि भारतीय गोरे चमड़ेको अपना राजा मानने लगे हैं; चाहे वह व्यापारी हो या यूरोपका चमार । बस, उसे देखते ही उनके हाथ-पैर कापते हैं । अतएव यूरोपीय व्यापारियोंको अच्छे काम करनेवाले, हट्टे कट्टे, बलवान सस्ते भारतीय मजदूरोंसे वदकर मजदूर उनके देशमें नहीं मिलते; इस कारणसे भी बहुतसे विदेशी व्यापारी भारतमें आ जमे हैं और भारतसे अगणित द्रव्य अपने देशमें भेज रहे हैं !
इंग्लैण्डके मजदूर भारतीयोंसे महँगे हैं, इसका प्रमाण भारतमें ही सर्वत्र देखने में आता है-यदि उच्च शिक्षत बाबू रामलाल जिनकी अवस्था २५।२६ वर्ष की है, २०) रु० मासिक पर ई० आई० आर० रेलवेके इलाहाबाद स्टेशन पर टिकट कलक्टर हैं तो उनका असिस्टेन्ट मि० टेनीसन जो १५/१६ वर्षका छोकरा है, ४०) रु० मासिक पाता है । वास्तवमें वह हमारे रामलालसे अयोग्य है । उसकी
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