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व्यापार।
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जुर्राबें, २ पैसेके २ शीशे, ११२ दवात, २।४ पेन्सिलें हैं वही अपनी दूकानका " बर्मन एण्ड कम्पनी " आदि अनेकों अच्छे अच्छे नाम रख कर दुनियाको लूटनेका जाल फैला बैठता है । जिस देशमें बुद्ध नाई, पूरन तेली तथा पन्ना धोबी भी अपनी दूकानोंका नाम * कम्पनी ' रख कर लोगोंको धोखा देते हैं, भला वहाँ कम्पनियोंका टोटा क्यों कर हो सकता है ! कई धूर्त लोग अपने नोटपेपर, कार्ड, लिफाफे, चिट आदि चटक मटकदार छपवा कर लोगोंको धोखा दिया करते हैं। कई अपने नोटपेपरों पर " Patronized by the Rajahs and Maharajas of Indio भारतीय राजा और महाराजाओंसे संरक्षित " छपवा लेते हैं। उनसे यदि उनके संरक्षक महाराजका नाम पूछिए तो बस उत्तर ही नदारद । जिसे दादकी दवाई और दाँतका मजन बनाना आया कि उसने भी एक कम्पनी बना ली; कपूर, पीपरमेंट, अजवाइनका फूल मिला कर पेनकिलर, पीयूषसिंधु, अमृतबिंदु सुधासागर नाम रख कर एक कम्पनी बना ली। इत्र-कंपनी, तेल-कम्पनी, बाल उड़ानेके साबुनकी कम्पनी, बच्चों के खिलौनेकी कम्पनी भारतमें अगणित हैं। पर मेरा मतलब इन चोर और सत्यानाशिनी कंपनियोंसे नहीं है। य कम्पनिया भी भारतके व्यापारको विगाड़ कर लोगोंमें अविश्वास उत्पन्न कर रही हैं । पाठक स्मरण रखें। __ हमारे देशमें सन् १९०५ में १७२८ कंपनिया थीं। उसी वर्ष इंग्लैण्डमें ४०९९५ थीं। भारतीय कंपनियोंका मूलधन २,८०,००, ००० पाउण्ड और इंग्लैण्डकी कम्पनियों का मूलधन २,००,००,००, ००० पाउण्ड था ! अर्थात् भारतसे २४ गुनी अधिक कम्पनियाँ अकेले इंग्लैण्ड में हैं और उनका मूलधन ७१ गुणा अधिक है।
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