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व्यापार।
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ज्यापार करनेके लिये आईं हमारी अवस्था उनसे कम नहीं थी, कदाचित् अच्छी ही थी। परन्तु जब यूरोप में 'औद्योगिक विषय, १७७० के पश्चात् प्रारम्भ हुआ उस समय वहाँके मध्यम श्रेणीके लोग वैभवशाली थे तथा राजनैतिक और धार्मिक स्वतंत्रताके लिये युद्ध करते करते औद्योगिक युद्ध करने योग्य शक्ति और उत्साह उनमें उत्पन्न हो गया था। उसी समय भारतवर्ष आपसके कलह तथा राजनैतिक कुचक्रोंमें फँसा हुआ था।
(२) पश्चिमीय देशोंकी वर्तमान औद्योगिक अभ्युत्थानकी जड़ बाँके कच्चे और पक्के लोहेका शिल्प ह । औद्योगिक विप्लवका 'प्रारंभ शिल्पमें वाष्प-यंत्रों के प्रयोगसे प्रारम्भ हुआ। जब औजारोंकी जगह मशीनें काममें आने लगी तब यूरोपमें लोह-शिल्पकी स्थिति ऐसी थी कि एक ही नापके कल-पुर्जे बनने लगे, जिससे उनके प्रचारमें बड़ा सुभीता हुआ । लोहेके काममें भारतवर्ष बहुत हीन अवस्थामें है । यद्यपि यहाँ सन् १८७५ ई० से लोहा ( Pigiron ) निकाला जा रहा है, तथापि उससे वस्तु-निर्माणका कार्य केवल सन् १९१४ ई० में आरम्भ हुआ । सन् १९१३-१४ ई० में रेलकी पटरियाँ, लोहेकी चद्दरे आदि २४ करोड़ का लोहा भारतवर्ष में आया। मशीनें, मोटरकार आदि इसके अतिरिक्त हैं।
(३) ईस्ट इन्डिया कम्पनीने कुछ उद्योग स्थापित करने की चेष्टा की थी-उदाहरणार्थ दक्षिणमें लोहे का कारखाना था;परंतु वह सफल न हुई। यह विचार किया गया कि वह उष्ण देश जहाँ भूमि उपजाऊ है, केवल कृषि-कार्यके योग्य है, कला-कौशलके नहीं। फिर जब यह सिद्धान्त भी ढीला हुआ तब उद्योगकी उन्नतिके लिये जो प्रबन्ध किया गया वह केवल व्यवसायका मार्ग साफ कर देना और
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