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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यापार। १५ जुर्राबें, २ पैसेके २ शीशे, ११२ दवात, २।४ पेन्सिलें हैं वही अपनी दूकानका " बर्मन एण्ड कम्पनी " आदि अनेकों अच्छे अच्छे नाम रख कर दुनियाको लूटनेका जाल फैला बैठता है । जिस देशमें बुद्ध नाई, पूरन तेली तथा पन्ना धोबी भी अपनी दूकानोंका नाम * कम्पनी ' रख कर लोगोंको धोखा देते हैं, भला वहाँ कम्पनियोंका टोटा क्यों कर हो सकता है ! कई धूर्त लोग अपने नोटपेपर, कार्ड, लिफाफे, चिट आदि चटक मटकदार छपवा कर लोगोंको धोखा दिया करते हैं। कई अपने नोटपेपरों पर " Patronized by the Rajahs and Maharajas of Indio भारतीय राजा और महाराजाओंसे संरक्षित " छपवा लेते हैं। उनसे यदि उनके संरक्षक महाराजका नाम पूछिए तो बस उत्तर ही नदारद । जिसे दादकी दवाई और दाँतका मजन बनाना आया कि उसने भी एक कम्पनी बना ली; कपूर, पीपरमेंट, अजवाइनका फूल मिला कर पेनकिलर, पीयूषसिंधु, अमृतबिंदु सुधासागर नाम रख कर एक कम्पनी बना ली। इत्र-कंपनी, तेल-कम्पनी, बाल उड़ानेके साबुनकी कम्पनी, बच्चों के खिलौनेकी कम्पनी भारतमें अगणित हैं। पर मेरा मतलब इन चोर और सत्यानाशिनी कंपनियोंसे नहीं है। य कम्पनिया भी भारतके व्यापारको विगाड़ कर लोगोंमें अविश्वास उत्पन्न कर रही हैं । पाठक स्मरण रखें। __ हमारे देशमें सन् १९०५ में १७२८ कंपनिया थीं। उसी वर्ष इंग्लैण्डमें ४०९९५ थीं। भारतीय कंपनियोंका मूलधन २,८०,००, ००० पाउण्ड और इंग्लैण्डकी कम्पनियों का मूलधन २,००,००,००, ००० पाउण्ड था ! अर्थात् भारतसे २४ गुनी अधिक कम्पनियाँ अकेले इंग्लैण्ड में हैं और उनका मूलधन ७१ गुणा अधिक है। For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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