Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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(२४)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
[७४] अयोरजादियोगः
[७७] अर्कपुष्पी योगः (पृ. नि. र. काम.)
(वृ. नि. र. भा. ५ अश्म.) तुल्यमयोरजः पथ्या हरिद्रा क्षौद्रसर्पिषा। गव्येन पिष्टा पयसार्कपुष्पी चूणितं कामली लिह्याद्गुडक्षौद्रेण वामयाम् ॥ | निपीयमाना त्रिदिनं प्रभाते ।
लोहचूर्ण, हरड़ और हल्दी । इनका चूर्ण शहत विदार्य वीर्येण निजेन तीव्रामप्यश्मरी और घीके साथ अथवा हैड़ का चूर्ण गुड और |
या कुरुते च दाहम् ।। शहद के साथ चाटने से कामला को आराम
। अर्कपुष्पी (हुलहुल) गायके दूधमें पीसकर होता है।
| ३ दिन तक रोज प्रातःकाल पीनेसे दाह युक्त [७५] अरिष्टादि चूर्णम्
प्रवृद्ध पथरी का भी नाश होता है । (यो. चि.)
[७८] अर्कादिक्षार निम्बच्छदो दशपलं त्र्यूषणं च पलत्रयम् ।
(ा नि. र. वाताशें) त्रिपलं त्रिफला चैव त्रिपललवणत्रयम् ।।
| तरुणान्यर्क पत्राणि पश्चैव लवणानि च । द्रौ क्षारौ द्विपलं चैव यवानी पलपश्चकम् ।
युक्तानि तैलेनाम्लेन दहेत्क्षारश्च युक्तितः ।। सर्वमेकीकृतं चूर्ण प्रत्यूषे भक्षयेभरः ॥
उष्णोदकेन मद्यैर्वापीतो वातार्शसां हितः ॥ एकाहिकं द्वयाहिश्च त्राहिकश्च तथा ज्वरम् ।
___आकड़ेके कोमल पत्तोंको तेल और पांचो चतुर्थिकं महाघोरं सान्त्वयेत्सन्ततं ज्वरम् ॥
नमक तथा कांजी के साथ विधिवत् भस्म करके नीमके पत्ते ५० तोला, त्रिकुटा १५ तोला,
क्षार बनावे । इसे गरम पानी या मद्यके साथ त्रिफला १५ तोला, सैंधा, सौंचल और सांभर
सेवन करनेसे बादीकी बवासीरका नाश होता है। तीनो १५ तोला, दोनों क्षार १० तोला, अजवायन
[७९] अर्जुनादि क्षीरम् २५ तोला । इन सबका चूर्ण करके प्रातः काल
(यो. र. ह. रो.) खानेसे दैनिक, तिजारी, चौथिया आदिका नाश
अर्जुनस्य त्वचासिद्धं क्षीरं पित्तहृदतिजित् । होता है। [७६] अर्कलवणम्
सितया पश्चमूल्या वा वलया मधुकेन वा ।। (च. द. उ. चि.)
दूधको अर्जुनकी छाल डालकर पकाकर अर्कपत्रं सलवणनन्तधूमं दहेत् ततः
मिश्रि मिलाकर पीनेसे अथवा पञ्चमूल या बला मस्तुना तं पिबेत्क्षारं गुल्मप्लीहोदरापहम् ॥
के साथ या मुलैठी के साथ पकाकर मिश्री आकड़े के पत्ते और लवण को मिट्टी के
डालकर पीनेसे पित्तज हृद्रोगका नाश होता है । बरतन में बन्द करके मुख पर कपड़मिट्टी करके
[८०] अलम्बुषादि चूर्णम् चूल्हे पर चढाकर अन्तधूम जला ले। इस क्षार को
(मा. प्र. म. खं. आ. वा.) मस्तु के साथ पीने से गुल्म और तिल्ली का | अलम्बुषा गोक्षुरकं गुडूची वृद्ध दारकम् । नाश होता है।
| पिप्पली त्रिवृतां मुस्तां वरुणं सपुनर्नवम् ॥
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