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हम जैसे तो गौतम स्वामी के रज-कण के समान भी नहीं हैं, फिर किस बूते पर हम अभिमान कर सकते हैं? हमारे पास ऐसा कौन-सा विशेष वैभव है, जिस पर हम अभिमान कर सकें ? इतने ज्ञानवान् गौतम स्वामी ने भी अभिमान नहीं किया, यह विचार कर अभिमान का त्याग करो। अब भगवती सूत्र के प्रथम शतक के पांचवे उद्देशक का व्याख्यान आरंभ होता है। प्रत्येक उद्देशक की तरह इस उद्देशक के प्रारंभ में भी पूर्ववत् उपोद्घात किया गया है । अर्थात् वह समय, वह काल, वही राजगृह नगर, गुणशील उद्यान, आदि बतलाया गया है । प्रत्येक उद्देशक में इस प्रकार का उपोद्घात समय स्थान आदि बतलाने के उद्देश्य से किया गया है।
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नरका वास
प्रश्न – कइ णं भंते! पुढवीओ पण्णत्ताओ?
उत्तर - गोयमा ! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, तंजहा - रयणप्पभा
जाव तमतमा ।
प्रश्न- इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए कति निरयावास सयसहस्सा पण्णत्ता?
उत्तर - गोयमा ! तीसं निरयावास सयसहस्सा पण्णत्ता । गाहा: तीसा य पण्णवीसां पण्णरस दसेव या सयसहस्सा ।
तिण्णेगं पंचूणं पंचेव अणुत्तरा निरया ।।
प्रश्न - - केवइया णं भंते! असुरकुमारावास सयसहस्सा पवण्णत्ता? उत्तर- एवं:
चउसट्ठी असुराणं चउरासीई य होइ नागाणं । बावत्तरं सुवण्णाणं वाउकुमाराण छण्णउई । । दीव - दिसा - उदहीणं विज्जुकुमारिंद-थणियमग्गीणं । छण्हं पि जुयलयाणं, छावत्तरिमो सयसहस्सा ।।
प्रश्न - केवइया णं भंते! पुढविक्काइया वास सयसहस्सा पण्णत्ता? उत्तर-गोयमा! असंखेज्जा पुढविक्काइयावास सयसहस्सा पण्णत्ता, जाव-असंखिज्जा जोइसिए विमाणा वास सयसहस्सा पण्णत्ता । प्रश्न - सोहम्मे णं भंते! कप्पे केवईया विमाणावासा पण्णत्ता? उत्तर - गोयमा ! बत्तीसं विमाणावास सयसहस्सा पण्णत्ता । एवंबत्तीस - द्वाबीसा बारस- अट्ठ- चउरो सयसहस्सा । पण्णा - चत्तालीसा छच्च सहस्सा सहस्सारे ।। आणय-पाणयकप्पे चत्तारि सयाऽऽरणच्चुए तिण्णी ।
भगवती सूत्र व्याख्यान ३