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श्रीमद्भगवती सूत्र
प्रथम शतक
पंचम उद्देशक विषय प्रवेश
चौथे उद्देशक तक का व्याख्यान देहली चातुर्मास में पूर्ण हो गया था, अब पांचवां उद्देशक आरम्भ किया जाता है। आचार्यों की कृपा से गणधरों की वाणी सूत्रों में लिखी हुई है। पंचमकाल के लोगों के लिए यह बड़ी कल्याणकारिणी है। उनका अहोभाग्य है कि जिन्हें भगवान् की पवित्र वाणी सुनने का अवसर प्राप्त होता है। सूत्र की वाणी हर्ष के साथ श्रवण करना चाहिए ।
चौथे उद्देशक के अन्त में गौतम स्वामी ने प्रश्न किया था, भगवन् ! अर्हन्त जिन केवली को अलमस्तु कह सकते हैं? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया था- हां, गौतम! कह सकते हैं।
गौतम स्वामी के इस प्रश्न में अनेक रहस्य छिपे हैं। संसार मे जब भ्रम फैल जाता है, तो उत्तम तत्व का कुछ का कुछ अर्थ होने लगता है । अर्थ की इस विपरीतता के कारण वातावरण में गंदगी फैलने लगती है । गौतम स्वामी ने संसार को गंदगी से बचाने के उद्देश्य से यह प्रश्न किया था ।
उत्तम तत्व के अर्थ में विपर्यास होने का कारण यह है कि कुछ लोग ज्ञान या योग की सिद्धि हो जाने पर मन की बात या सीमित भूत, भविष्य की बात बतलाने लगते हैं। लोग श्रद्धा और अज्ञता के कारण उन्हें पूर्ण पुरुष मान लेते हैं। इस प्रकार से बने हुए पूर्ण पुरुष की दो-चार अच्छी बातों के साथ कई खराब बातें भी निभ जाती है। नतीजा यह होता है कि अनादर्श पुरुष आदर्श माना जाने लगता है । अपूर्ण पुरुष को पूर्ण मान बैठना पूर्ण पुरुष की अवज्ञा करना है। गौतम स्वामी के इस प्रश्न द्वारा योगियों को सावधान किया गया है कि तुम्हारी शक्ति चाहे कितनी ही क्यों न हो? अपने आपको अपूर्ण ही समझो - 'अलमस्तु' मत मानो । इसके साथ ही संसार के लोगों को भी यह भगवती सूत्र व्याख्यान
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