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भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ वैरोचनराज बलिन्द्र
वन्दना नमस्कार किया। वन्दना नमस्कार करके जहां द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार थे वहाँ आये, वहाँ आकर उन्हें वन्दना नमस्कार किया, वन्दना नमस्कार करके पूर्वोक्त बात के लिए अर्थात् उनकी कही हुई बात नहीं मानी थी, इसके लिए उनसे बार बार विनयपूर्वक क्षमा याचना की।
विवेचन-जिस प्रकार चमरेन्द्र का कथन किया गया है, उसी प्रकार उसके सामानिक और त्रास्त्रिशक देवों का भी वर्णन करना चाहिए । इसी प्रकार चमरेन्द्र के लोकपाल और अग्रमहिषियों का भी कथन जानना चाहिए, किन्तु विशेषता यह है कि इनकी शक्ति संख्यात द्वीप समुद्रों तक के स्थल को भरने की है, असंख्यात की नहीं। चमरेन्द्र, सामानिक और त्रायस्त्रिश की अपेक्षा लोकपाल और अग्रमहिषियाँ अल्प ऋद्धि वाली हैं। इसलिए इनकी वैक्रिय करने की ठाक्ति भी उनकी अपेक्षा अल्प है।
वैरोचनगज बलिन्द्र
८ प्रश्न-तएणं से तच्चे गोयमे वाउभूई अणगारे दोच्चेणं गोयमेणं अग्गिभूइणामेणं अणगारेणं सद्धि जेणेव समणे भगवं महावीरे, जाव-पज्जुवासमाणे एवं वयासी-जहणं भंते ! चमरे असुरिंदे, असुरराया एमहिड्ढीए, जाव-एवइयं च णं पभू विउवित्तएबली णं भंते ! वहरोयाणंदे, वइरोयणराया के महिड्ढीए, जाव-केवइयं च णं पभू विउवित्तए ?
८ उत्तर-गोयमा ! बली णं वहरोयाणिदे, वइरोयणराया महिड्डीए जाव-महाणुभागे, से णं तत्थ तीसाए भवणावाससयसहस्साणं, सट्टीए सामाणियसाहस्सीणं, सेसं जहा चमरस्स तहा बलिस्स वि
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