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पाध्याय एम० ए०ने ठीक कहा है कि पार्श्वनाथजी जैनधर्मके आदि प्रचारक नहीं थे, परन्तु इसका प्रथम प्रचार ऋषभदेवजीने किया था। इसकी पुष्टिके प्रमाणोंका अभाव नहीं है ।"' हठात् डॉ० हर्मन जैकोबीको भी यह प्रगट करना पड़ा है किः
“ But there is nothing th prove that Parsva was the founder of Jainism. Jaina tradition is unanimous in making Rishabha the first Tirthankara (as its founder)......there may be something historical in the tradition which makes him the first Tirthankara."-( Indian Antiquary. VOI, IX. P. 163.:) ___अर्थात-'पार्श्वको जैनधर्मका प्रणेता या संस्थापक सिद्ध करनेके लिए कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। जैन मान्यता स्पष्ट रीतिसे प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेवको इसका संस्थापक बतलाती है। जैनियोंकी इस मान्यतामें कुछ ऐतिहासिक सत्य हो सक्ता है।' इस प्रकार पाश्चात्य विद्वानों का पूर्वोक्त मत उन्हींके बचनोंसे बाधित है तौभी हम स्वतंत्र रीतिसे जैनधर्मकी प्राचीनतापर प्रकाश डालेंगे; जिससे कि विद्वत्समाजसे यह भ्रम दूर होजाय कि जैनधर्मके संस्थापक श्री पार्श्वनाथजी अथवा महावीर थे । जैनधर्मकी विशेष प्राचीनता स्वयं उसके कतिपय सिद्धांतोंसे
ही प्रगट है। उसमें जो वनस्पति, जैनधर्मकी प्राचीनता पृथ्वी, जल, अग्नि आदि पदार्थोमें उसके सिद्धान्तोंसे जीवित शक्तिका होना बतलाया गया . प्रकट है। है, वह उसकी बहु प्राचीनताका द्योतक
है । क्योंकि Euthology विद्याका मत इस सिद्धांतके विषयमें है कि वह सर्व प्राचीन मनुष्योंका मत
१-पूर्व पृ० १८ ।