Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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2 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
सचेलक परम्परा के समवायांगसूत्र में बताया गया है निर्ग्रन्थसम्बन्धी आचार, गोचर, विनय, वैनयिक, स्थान, गमन, संक्रमण, प्रमाण, योगयोजना, भाषा, समिति, गुप्ति, शय्या, उपधि, आहार-पानी सम्बन्धी उद्गम, उत्पाद, एषणाविशुद्धि एवं शुदशुद्धग्रहण, व्रत, नियम, तप, उपधान, ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार तथा वीर्याचारविषयक सुप्रशस्त विवेचन आचारांग में उपलब्ध है।
. नंदीसूत्र में बताया गया है कि आचारांग में श्रमण निर्ग्रन्थों के आचार, गोचर, विनय, वनयिक, शिक्षा, भाषा, अभाषा, चरणकरण, यात्रा, मात्रा तथा विविध अभिग्रह विषयक वृत्तियों एवं ज्ञानाचारादि पाँच प्रकार के आचार पर प्रकाश डाला गया है।
समवायांग व नन्दीसूत्र में आचारांग के विषय का निरूपण करते हुए प्रारंभ में ही "आयार-गोयर" ये दो शब्द रखे गये हैं। ये शब्द आचारांग के प्रांरभिक अध्ययनों में नहीं मिलते । विमोह अथवा विमोक्ष नामक अष्टम अध्ययन के प्रथम उद्देशक में "आयार-गोचर'' ऐसा उल्लेख मिलता है। इसी अध्ययन के दूसरे उद्देशक में "आयारगोयरं आइक्खे" इस वाक्य में भी आचार-गोचरविषयक निरूपण है। अष्टम अध्ययन में साधक श्रमण के खान-पान तथा वस्त्र-पात्र के विषय में भी चर्चा है। इसमें उसके निवासस्थान का भी विचार किया गया है। साथ ही अचेलक-यथाजात श्रमण तथा उसकी मनोवृत्ति का भी निरूपण है। इसी प्रकार एकवस्त्रधारी, द्विवस्त्रधारी तथा त्रिवस्त्रधारी भिक्षुओं एवं उनके कर्तव्यों व मनोवृत्तियों पर भी प्रकाश डाला गया है। इस आचार-गोचर की भूमिकारूप आध्यात्मिक योग्यता पर ही प्रारंभिक अध्ययनों में भार दिया गया है।
विषय :- वर्तमान आचारांग में क्या उपर्युक्त विषयों का निरूपण है? यदि है तो किस प्रकार? उपर्युक्त राजवार्तिक आदि ग्रन्थों में आचारांग के जिन विषयों का उल्लेख है वे इतने व्यापक व सामान्य है कि ग्यारह अंगों में से प्रत्येक अंग में किसी न किसी प्रकार उनकी चर्चा आती ही है। इनका सम्बन्ध केवल आचारांग से ही नहीं है। अचेलक परम्परा के राजवार्तिक आदि ग्रन्थों में आचारांग के श्रुतस्कन्ध, अध्ययन आदि के विषय में कोई उल्लेख नहीं मिलता। उनमें केवल उसकी
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