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अनेकान्त
हैं तथा यादव माधव काले का उतारा भी देखा है । काले (१४) महाराष्ट्रातील जिल्हे-अकोला जिला इस जी के और भी विचार ग्रागे के लेख में दिए जाएगे। ये किताब मे भी ऊपर जैसा उल्लेख मिलता है। सब इतिहासज्ञ और शिल्पज्ञ पौली मंदिर को दिगंबरों का टीप :-शिरपुर मे पांच साल पहले एक विशाल ही सिद्ध करते हैं । तो भी 'मेरे मुर्गे की एक ही टांग' ऐमा श्वेताबर मन्दिर की प्रतिष्ठा हुई है। उसका नाम विघ्नकरने वाले विघ्नसंतोषी लोग प्राज भी कहते है कि- हर पार्श्वनाथ है। "(i) यह मदिर श्वेताबर का ही है। (ii) इस मंदिर मे
(१५) 'मन्दिरमाल मुक्नागिरी' इस किताब का अजैन एक भी दिगबरी मूर्ति नहीं है। (iii) इस मंदिर पर
लेखक दि. जैन सिद्ध क्षेत्र मुक्तागिरी का इतिहास बता मैनेजमेंट श्वेतांबरों का ही है।"
कर पृष्ठ पर लिखता है-(अनुवाद) “सातपुडे के एक श्वेतांबर साधु तो यहा तक लिखते हैं कि पायथे मे एलिचपर इस राजधानी में राज्य करने वाले दिगबरो ने जबदस्ती से इस मंदिर मे हालही कुछ दिगंबरी ईल राजा ने (ई० स० १०५८) ईशान्य दिशा में पाच मूर्तियां रखी हैं पादि । यह सब उल्लेख जनता के सामने कोम पर मुक्तागिरी यह रमणीय स्थल निर्माण किया। रखने का कारण यह है कि यहां हमको कुछ धोखा दिख निदान इस क्षेत्र का पहला जीर्णोद्धार ईल राजा ने किया रहा है। ग्राज तक कब्जा और मैनेजमेट इस मदिर पर और तब से जैनो का यात्रास्थल करके उसको प्रसिद्धि दिगबरों का ही है। मगर उसमें बाधा डाली जायगी तथा मिली। इस ईल राजा के अंभल में विदर्भ मे अनेक जैन शायद वहा प्रतिष्ठित दिगंबर मूर्तिया हटाकर श्वेताबर स्थल निर्माण हए। जैनों के इतिहास का वह बहरकाल मुर्तियां स्थापित होगी। इस धोखाको टालने के लिए दुरुस्ती था। शिरपुर, मादक, पातूर आदि के जैन मन्दिर भी कार्य प्रारम्भ कर दिया है, उसका बजेट १५ हजार रुपये इसी काल मे निर्माण हए है। इस कार्य मे ईल राजा का के करीबन है। प्रागा करता है दानी लोग इसको न बड़ा महयोग था।" भूलेगे।
(१६) 'एलिचपुर के राजाईल तथा मुक्तागिरी' इस अब पाठको के अधिक विश्वाम के लिए और भी कुछ
७ लेख में प्राधुनिक महान इतिहासज्ञ श्री य. खु देशपाडे प्राधुनिक उतारे पेश कर रहा है। बीमवी सदी के मन्त
लिखते है कि ईल गजा दिगबर जैन धर्मानुयायी था। मे भी इस मदिर के शिला बाबत लिखने वाले इग मन्दिर
उसने शिरपुर का भी मन्दिर बनवाया था। को 'दिगंबरी' ऐसा स्पष्ट लिखते हैं। देखिए
प्रादि अनेक भारतीय इतिहासज्ञों के मत, इस मंदिर (१३) महाराष्ट्र राज्य परिचय-(सरकारी प्रका
को स्पष्टयता दिगंबरी ही घोषित करने वाले, दिये जा शन) पान १२८ पर 'प्रेक्षणीय स्थले' मे लिखा है
सकते हैं। लेकिन विस्तार भय के कारण इस विषय को 'शिरपूर यह दो जैन मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। उसमें एक यहां ही छोड़ देता हैं। अमत पूरा चाखने पर ही मोठा दिगंबर जैन समाज का अंतरिक्ष पार्श्वनाथ का प्रतिशय
लगता है, ऐसा नहीं तो उसका प्रश भी मिठाई के लिए प्राचीन मंदिर है।"
पर्याप्त है। १. जब इस मदिर मे इलेक्ट्री फिटिग दिगम्बरियों की अन्त मे कहता हूँ कि जिस श्री देवाधिदेव अंतरिक्ष
तरफ से की गई, तब उसमे बाधा लाते हुए श्वेतांबरो पार्श्वनाथ की मूर्ति के लिए यह दिगंबरी शिल्पवाला मंदिर ने ऐसा लेखी जवाब दाखल किया है। लेकिन संतोप निर्माण हुमा वह मूर्ति भी दिगबरी ही है। इसका पूरा की बात है कि इस कार्य की दिगंबरी ने नानोमे लगन विवेचन पाठको को प्रागे के लेख में मिलेगा । पाठक देरी रहने से वह कार्य देरी से क्यों न हो, पूर्ण हमा है। के लिए क्षमा करें । अस्तु ।