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नहीं एसो जन्म बारम्बर
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नहीं ऐसो जन्म बारम्बर
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धर्मप्रेमी बन्धुओं!
आज के प्रवचन में सुधर्मा देवलोक का वर्णन चल रहा है। देवलोक बारह माने गए हैं, उनमें प्रथम का नाम है, 'सुधर्मा देवलोक' इस देवलोक के इन्द्र विशेष कर समदृष्टि रहते हैं। तथा वे देवलोव के सम्पूर्ण सुखों का अनुभव करते हुए भी अपने अवधिज्ञान के द्वारा जान लेते हैं कि भरत खण्ड या अन्य स्थान
पर कहाँ क्या हो रहा है ?
उनके ध्यान में बराबर रहता है कि कहाँ पर भक्त अपनी भक्ति में लीन है ? कौनसा योगी तपस्या रत है? तथा कौनसा साधक अपनी साधना में लगा हुआ है? अपने ज्ञान से वे भली-भाँति जान लेते हैं कि कौन तपस्वी है ? कौन दानी है ? कौन सेवाभावी, सत्यवादी अथवा सचा भक्त है? सदगुणी प्राणियों को देखकर इन्द्र का हृदय प्रफुल्लित हो उठता है। वास्तव में ही जो सज्जन होता है। वह अन्य प्राणियों के दोषों की ओर ध्यान न देकर केवल गुणों को देखता है। कहा भी है :
" सज्जनश्च गुणग्राही ।"
इन्द्र भी जब अपनी देवसभा में बैठक हैं तो निष्कपट और प्रफुल्ल भाव से गुणियों की प्रशंसा करते हैं। संतों की महान साधना अथवा भक्तों की अविचलित भक्ति को देखकर उनका हृदय कह उठता है - 'धन्य हैं ऐसे संतों तथा भक्तों को, जिन्हें कोई भी अपनी साधना या भक्ति की विचलित नहीं कर सकता, इंचमात्र
भी चलायमान करने की सामर्थ्य नहीं रखता। क्योंवित
"त्यजन्त्युत्तमसत्त्वा हि प्राणानपि न सत्पथम् । "
जो उत्तम कोटि के प्राणी होते हैं, वे समय आने पर अपने धर्म की रक्षा करने के लिये अपने प्राणों तक की बलि देने के लिए तैयार हो जाते हैं, परन्तु सत्य मार्ग का परित्याग करने के लिये तैयार नहीं होते।
प्रशंसा गले नहीं उतरती
इन्द्र जब देव सभा में सद्गुणी व्यक्तियों की प्रशंसा करते हैं तो उपस्थित देवों में अनेक मिथ्यादृष्टि देव ऐसे भी होते हैं जिन्हें संसारी प्राणियों की प्रशंसा सहन नहीं होती। वे सोचते अन्न के कीड़े मनुष्यों की अल्पायु
'देव सभा में देवताओं की तारीफ न करके प्राणियों को तारीफ क्यों ?' मिथ्यादृष्टियों को