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आनन्द प्रवचन : भाग १ नरसंहार को तो एक आदमखोर व्यक्ति भी घृणा से देखता है। इतने मनुष्यों को खाया कैसे होगा?
एक विद्वान प्रोफेसर मौलिनोस्की की अफ्रीका के एक नरभक्षी से मुलाकात हो गयी।
बेचारा अपढ़ और आधुनिक सभ्यता था रीति-रिवाजो से अनजान आदमखोर प्रोफेसर साहब से पूछ बैठा -
___"क्यों जी! पिछले महायुद्ध की एक बात मैं अभी तक नहीं समझ पाया। तुम लोगों ने इतने आदमी युद्ध में एक साथ मार डाले, पर उन सबको खाया कैसे होगा?"
प्रोफेसर ने उत्तर दिया - 'उन्हे खाने के लिए थोड़े ही मारा था?"
सुनकर आदमखोर बड़ा चकित हुआ। साथ ही अत्यंत घृणा से बोला - जंगखोर आदमी आदमखोर से किस कदर कदतर होता है कि बिना वजह आदमियों को मारता है।"
आशा है इस उदाहारण से आप समझ गए होंगे कि मनुष्यों को मारकर खा जाने वाल नरभक्षी व्यक्ति भी बिना गनह आदमियों के नरसंहार को कितना खराब और घृणित मानता है। किन्तु शक्ति के मद में चूर व्यक्ति इतनी सी बात को भी नहीं समझ पाता।
धन का लोभ और उसे प्राप्त कर लेने पर अहंकार की वृद्धि के कारण मानव को उचित अनुचित का भान नहीं पहता। किन्तु उसके अहंकार में कितना सत्य है यह वह नहीं समझ पाता। इसे समझाने के लिए एक और उदाहरण आपके सामने रखता हूँ। कितने प्राणियों का पालण-पोषण करता हूँ
वीर शिवाजी सामन्तगढ़ का किला बनवा रहे थे। एक दिन वे अपने गुरु 'समर्थ' के साथ उसका निरीक्षण करने आये।
वहाँ पर अनेकों मजदूरों को काम करते हुए देखकर शिवाजी के मन में अहंकार का भाव आया कि मैं कितने प्रापियों का पालन करता हूँ। सद्गुरु समर्थ शिष्य की इस भावना को समझ गये और बोले - "वाह शिवा! तुम्हारे कारण कितने जीवों को पालन हो रहा है।"
शिवाजी गुरु के व्यंग को नहीं समझे और अपने आपको धन्य मानकर कह उठे - "यह सब आपके आशीर्वाद का ही पल है।"
इतने में ही पास में पड़ी एक शिना को देखकर गुरु समर्थ बोले - "यह