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रक्षाबंधन का रहस्य
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सीधे-साधे शब्दों में कितनी महत्वपूर्ण बात कह दी गई है ? संस्कृत में भी यही कहा गया है:
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'न धर्मो धार्मिकैर्विना । '
धर्म धर्मी के बिना नहीं रहता। दोनों एक दूसरे पर अवलंबित होते हैं। धर्म धर्मी की अपेक्षा करता है और धर्मी धर्म की। धर्म के अभाव में जीवन एक विडंबना बन जाता है। महात्मा गाँधी ने धर्म का महत्व बताते हुए कहा है -
'बिना धर्म का जीवन बिना सिध्दान्त्र का जीवन होता है और बिना सिध्दांत का जीवन वैसा ही है जैसे कि बिना पक्वार का जहाज जैसे बिना पतवार का जहाज मारा-मारा फिरेगा उसी तरह धर्महीन मनुष्य भी संसार सागर में इधर से उधर मारा-मारा फिरेगा और कभी भी अपने अष्ट स्थान तक नहीं पहुँचा सकेगा।'
-- गाँधीजी
महापुरुषों के विचारों का सारांश यही है कि धर्म का त्याग करना जीवन में अमंगल को आमन्त्रित करने के समान है क्योंकि धर्म आत्म-विकास का साधन है और हमें आचरण की शिक्षा देने दाता है। आचरण हीन जीवन जीवन नहीं है। दूसरे शब्दों में जिस क्षण मनुष्य का आचरण गिरना अथवा गलत होना शुरू हो जाता है, वहीं उसके जीवन की समाप्ति प्रारम्भ हो जाती है।
इसीलिये, अहिंसा, संयम, और उन जो कि आत्मा के निज गुण हैं तथा दूसरे शब्दों में धर्म के नाम से पुकारे जाते हैं, इनके विपरीत चलना, विपरीत आचरण करना धर्म को नष्ट करना है। और ऐसा करने से इनकी क्या प्रतिक्रिया होती है इस विषय में कहा गया है :
धर्म एव हतो हन्ति, धर्मो रक्षति रक्षितः । तस्माध्दमों न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतो वधीत
- वेदव्यास
मारा हुआ धर्म हमको मारता है और हमसे रक्षा किया हुआ धर्म हमारी रक्षा करता है, इसीलिये धर्म का हनन नहीं करना चाहिए, जिससे तिरस्कृत धर्म हमारा विनाश न करे ।
मेरे कहने का अभिप्राय यही है कि आज के इस शुभ दिवस पर हम केवल प्राणियों की रक्षा करने का ही व्रक न लें, अपितु धर्म की तथा धर्मी की रक्षा करते रहने का भी निश्चय करें। जा भी साधु साध्वी और धर्मात्मा श्रावक
व श्राविकाएँ हैं, उनकी रक्षा करने का भरसक प्रयत्न करें। साधु-सन्त आपसे शारीरिक सेवा नहीं लेते। उनकी अपनी जो मर्यादा है, उसे ध्यान में रखते हुए सेवा करनी चाहिए। रक्षा बन्धन का दिन यही सन्देश देता है।