Book Title: Anand Pravachana Part 1
Author(s): Anandrushi
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 287
________________ • [२७७] आनन्द प्रवचन : भाग १ और तिरस्कार के उसने उन चावलों को फेंक दिया। मन में कहा -- "जब मांगेंगे भंडार भरे पड़े हैं पाँच दाने लाकर दे दूंगी।" दूसरी बहू ने विचार किया - 'अब उन्हें कहाँ सम्भाल कर रखू? गुम-गुमा जाएँगे। चलो, बड़ों की दी हुई चीज है तो प्रसाद के समान ही है. खा ही जाऊँ। और उसने वे दाने खा लिये। तीसरे नम्बर की बहू ने सोचा - 'मुझे ससुर की आज्ञा का पालन करना चाहिए। उन्होंने जब इन्हें संभाल कर रखने वे लिये ही दिये हैं तो सुरक्षित स्थान पर रख लेती हूँ जब मांगेंगे तो उनके दाने लौटा दूंगी।' और उसने पांचों दानों .. को तिजोरी में अपने आभूषणों के साथ रख दिया। चौथी बहू सबसे छोटी, पर बड़ी बुद्धिमान थी। उसने विचार किया - पिताजी ने आज जो पाँच-पाँच चावल के दान1 दिये हैं वे क्या यों ही दिये होंगे? क्या घर के कर्णधार बहुओं से मजाक करेंगे नहीं जरुर ही इन दानों के दिये जाने के पीछे कोई रहस्य है। उनके मन में कोई महत्त्वपूर्ण उद्देश्य छिपा हुआ है। अत: बहुत सोच-विचार कर उसने चावल के उन दानों को अपने पीहर भेज दिया और कहलाया कि जब तक मैं इन्हें वापिस न मंगवाऊँ तब तक इन्हें पुन:-पुन: बीज समझकर बोया जाय। धीरे-धीरे समय बीत चला और कई वर्ष बाद अचानक सेठजी ने चारों बहुओं से अपने दिये हुए चावलों की माँग की। पहली और दूसरी, दोनों ने भंडार में से दाने लाकर दे दिये। तीसरी ने तिजोरी में से लाकर दिये और सबसे छोटी बहू ने चावल के दानों के लिये अपने पीहर गाड़िया भेजी। धन्ना सेठ की परीक्षा हो चुकी। उन्होंने दाने फैंक देने वाली बड़ी बहू को घर की झाडू-बुहारी करने का काम सौंपा । दाने खा जाने वाली बहू को खाना बनाने के लिये रसोई का कार्य दिया। संभाल कर रख लेने वाली तीसरी बहू को सम्पत्ति का रक्षण करने के लिए भंडार की चाबियाँ प्रदान की और सबसे छोटी बहू, जिसने दानोंकी वृद्धि की थी, इसे सम्पूर्ण घर का उत्तरदायित्व संभला दिया। ऐसा सेठजीने क्यों किया? केवल गुगपंकी परख कर लेने के कारण। इस उदाहरण से साबित हो जाता है कि गुणों का ही सम्मान व आदर होता है। चाहे वे बड़ें में हों या छोटे में, पुरुष में हों या स्त्री में। कान भी है "गुणा: पूजास्थानं गुणिषु न चालिंगं न च वयः।" पूजा का स्थान केवल गुण ही है। उम्र अणधा लिंग नहीं। एक वृद्ध भी, अगर उसमें गुण नहीं हैं तो किसी के सम्मान का पात्र

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