Book Title: Anand Pravachana Part 1
Author(s): Anandrushi
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 327
________________ • [३१७] आनन्द प्रवचन भाग १ बच्चों को आलोचकों की अपेक्षा नमूनों की अर्जिक आवश्यकता है। आशय इसका यही है कि अगर हमें अगने बच्चों को सद्गुण सम्पन्न बनाना है तो उनके अज्ञानवश किये हुए गलत कार्य तो निन्दा तथा आलोचना न करके तथा उन्हें कटु वचनों के द्वारा तिरस्कृत न करुन हुए स्वयं सही कार्य को करना है बालक अगर आपको सदा सत्य बोलते हुए देखेगा तो वह सच बोलेगा, हिंसा करते हुए नहीं देखेगा तो वह हिंसा की भावना भी मन में नहीं लाएगा। उसे यह कहने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी कि तुम सत्य बोलो और अहिंसा का पालन करो। बालक अपने माता-पिता अथवा अन्य बच्चों की नकल करते हुए ही शिक्षा ग्रहण करता है। वह पिता को पान खाते देखकर पान खाता है, ताश खेलते देखकर ताश खेलता है और सिगरेट पीते देखकर धीरे-धीरे सिगारेट पीना सीख जाता है। हुए पर इसके विपरीत अगर वह अपने घर में अतिथि सत्कार होते देखता है, माता-पिता को संत मुनिराजों के दर्शन करते और उपदेश श्रवण करते हुए पाता है तथा उनके द्वारा दान दिया जाता है इस धात का अनुभव करता है तो वह स्वयं भी निश्चय ही इन उत्तम गुणों और शुभ कार्यों में रुचि लेने लगता है। मेरे घर चलो ! ऐवन्ताकुमार राजपुत्र थे। अपनी आठ वर्ष की बाल्यावस्था में एक दिन जब वे खेल-कूद में निमग्न थे, उन्होंने गौतम स्वामी को मार्ग पर से गुजरते देखा । उन्हें देखते ही वे अपना खेल छोड़कर भाग आए और गौतम स्वामी की अंगुलि "आप कौन हैं? कहाँ से पकड़ कर प्रश्नों की झड़ी लगा दी। पूछने क आए हैं? क्यों इस प्रकार घूम रहे हैं, तथा एक घर से निकल कर दूसरे घर में किस लिए जाते हैं ?" -- सन्तों के लिए बच्चों को तिरस्कृत करने का तो सवाल ही नहीं है अत: गौतमस्वामी ने मंद-मंद मुस्कराते हुए ऐवन्ताकुसर के प्रश्नों का उत्तर दिया और बताया "हम साधु हैं, भिक्षा के लिए घूमते हैं। एक घर से आहार लेना हमारे लिए मना है अतः हम अनेक घरों में जाकर अपनी मर्यादा के अनुसार आहार व पानी लेते हैं।" ऐवन्ताकुमार ने यह सब सुनकर परम प्रसन्नतापूर्वक अपनी स्वाभाविक सरलता के साथ कहा -- “ओहो, कितने अच्छे हो आप ? पर आहार- पानी के लिए इतना क्यों घूम रहे हो? मेरे घर चलो न! मेरी माँ बहुत अच्छी हैं। रोज बहुत से लोगों को भोजन कराती हैं, आपको भी खूब सारा दे देंगी और फिर आपको इतना घूमना नहीं पड़ेगा। चलो जल्दी! देर मत कांद्र, आपको भी भूख लग रही होगी न!" गौतमस्वामी को आहार लेना ही था और फिर बचे का आग्रह कैसे टालते

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