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सुनहरा शैशव
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सुनहरा शैशव
धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओ एवं बहनो!
शैशवकाल जीवन का सबसे सुनहरा समय माना जाता है। शैशवावस्था में शिशु का हृदय पूर्णतया सरल, विशुद्ध, निष्कपट और निर्दोष होता है। शिशुओं का संसार अलौकिक, अद्भुत और अद्वितीय होता है इसीलिए बालक प्रकृति की अनमोल देन और सुन्दरतम कृति कही जाती है। कहा भी है - "छोटे बच्चे तो भगदान की, परब्रहा की छोटी-छोटी मूर्तियाँ हैं।
- साने गुरुजी चतुर माली का कार्य
जिस प्रकार चतुर माली अपने बगीचे में लगाए पौधों की अत्यन्त सावधानी से काट-छाँट तथा सफाई करते हुए उन्हें समय पर पानी पिलाता है तथा पशु पक्षियों के द्वारा नष्ट किये जाने से बचाता है। उसी प्रकार माता-पिता को अपने शिशु की देख-रेख करनी चाहिए। क्योंकि बालक के शैशवकाल में समस्त मानवीय सद्गुणों के अंकुर विद्यमान रहते हैं। मगर उनकी सावधानी से देख-रेख की जाय, दुर्गुणरूप कचरे को उसी समय साफ कर दिया जाय तथा नियमित रूप से उत्तम संस्कारों के जल से सींचा जाय तो # अंकुर अपने सुन्दर रूप में विकसित होते
पर इसके लिए आवश्यक है कि जेस प्रकार माली अपने उपवन की सार-संभाल के लिए स्वयं कड़ा परिश्रम करता है, उसकी रक्षा में अपनी भूख प्यास और नींद को भी त्याग देता है, उसी प्रका। माता-पिता को भी अपने बालक को उत्तम गुणोंसे विभूषित करने के लिए मौज-शीक और अपने सुख-आराम की परवाह न करते हुए पूर्ण लगन के साथ उसके गविष्य निर्माण का प्रयल करना चाहिए। और यह तभी हो सकता है, जबकि माता-पेता स्वयं गुणवान हों, सुसंस्कारी हों तथा दानआदि का आदर्श उपस्थित करें। बानक अपने माता-पिता को जैसा करते देखता है, स्वयं भी वैसा ही करने का प्रयत्न करता है। एक विद्वान का कथन भी है
"Children have more nesd of models than of critics."
-जेबेरी