Book Title: Anand Pravachana Part 1
Author(s): Anandrushi
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 341
________________ • [३३१] है । " आनन्द प्रवचन भाग १ अहंकार और दिखावे के वश में होकर लोग किस प्रकार अपनी बर्बादी कर लेते हैं यह इस उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों को चेतावनी देने के लिए कहा जाता है : सुनरे सयाने तू गरूर क्यों करत एतो, है के अभिमानी हित] वेण नहिं धारे हैं। नीकापन यह तेरो द्वेष में विनाशे जाय, थिर ना रहेगा साज माज ये तिहारे हैं। देखत ही तेरे केते धूर में मिले हैं जन, अजहूँ ना नेक अभियान को उतारे हैं। कहे अमीरख धार के विनय गूल होहु छोड़ी दे गरूर गुरुदेव यों उचारे हैं। पूज्यपाद श्री अमीऋषि जी महाराज कहते हैं घमंड क्यों करता है? मान के नशे में चूर होने के कही हुई हितकारी बात भी नहीं रचती । अरे अभिमानी ! तू इतना कारण तुझे दूसरों के द्वारा तेरे पास सम्पत्ति है तो उसका उपयोग तू होड़ा होड़ में क्यों कर रहा प्रथम तो यह व्यर्थ अर्थात् तुझ में जो है ? इससे तुझे लाभ न होकर केवल हानि ही तो होगी ! नष्ट हो जायगी, दूसरे अहंकार के कारण तेरा जो नीकापन है, अच्छाइयाँ और नेक काम करने की भावनाएँ हैं! वे भी समाप्त हो जाएँगी। 'इसलिए अब भी चेत जा, और अभिमान का सर्वथा त्याग करके अपने धन को नेक कार्यों में लगाकर पुण्य का अधिकारी बन! अगर तुझे होड़ ही करनी है तो अहंकार का पोषण करने में मत कर, पुण्य संचय में कर! संत तुझे यही शिक्षा देते हैं कि अहंकार का त्याग करुफ नम्रता धारण कर और एक नेक पुरुष बन !" कहने का आशय यही है कि पाव सेर राई भेजने वाले भी गये और खसखस भेजने वाले भी गये रहा केवल वही जो उन्होंने इस संसार में आकर किया प्रत्येक व्यक्ति इसी प्रकार चला जाता है और अपने पीछे अपनी नेकनामी या बदनामी, छोड़ जाता है। नेकनामी और बदनामी क्या है यह आप जानते ही हैं। जय किसकी ? राम और रावण एक ही समय में तथा कृष्ण और कंस भी एक ही काल में हुए। पर राम और कृष्ण का नाम कितने आदर और श्रद्धा से लिया जाता है ? क्या कंस और रावण को लोग इसी प्रकार स्मरण करते हैं ? नहीं, उलटे

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