Book Title: Anand Pravachana Part 1
Author(s): Anandrushi
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 338
________________ नेकी कर कुएँ में डाल ! [३२८] को कभी अनसुना नहीं किया तथा दुखी व्यक्तियों की भलाई में ही अपना जीवन गुजारा। नौशेरवाँ के जीवन की नेकनामियाँ ही आज उसके नाम को चार चाँद लगा रही हैं। उसके नाम की खुशबू आज भी जनों की त्यों बनी हुई है, और वह कैसी है इसके लिए शायर ने कहा है : बस! नाम वर बजेरे जमीदणन कर दां अंद कज हस्तिमश वरु जमीं बनशां न माँद ॥ नौशेरवाँ बादशाह को भी जमीन में दफनाया गया और एक कहते हैं बुढ़िया जो थी, उसे भी मरने पर जमीन में दफनाया । दफनाये दोनों ही उसी जमीन में गए तथा इस नश्वर देह का अंजाम दोनों का एक सा हुआ। क्योंकि यह मिट्टी का पिंड तो चाहे राजा का हो या रंक का एक ही गति को प्राप्त होता है। जैसा कि किसी ने कहा है -- * कितने मुफलिश हो गए, किल्ले तवंगर हो गए। खाक में जब मिल गए, दोनों बराबर हो गए । अर्थात् - मर जाने के पश्चात् अगर की और गरीब की भले आदमी की और बुरे आदमी की देह में कोई अन्तर नहीं रहता। खाक में मिल जाने पर दोनों के शरीर की कोई भी निशानी वहाँ मौजूद नहीं होती। रहता है केवल नाम । अगर व्यक्ति भले काम कर जाता है तो उसे सभी स्मरण करते हैं। नौशेरवाँ का नाम भी आज इसीलिये अमर है। जिंदास्त नामे फर्रुख नौवाँ बअदल, गरचे बसे बबुजिस्त के शरवां न माँद । नौशेरवाँ बादशाह के दिल में एक बार आया कि मेरा वर्तमान राजमहल छोटा है, अतः एक विशाल राजमहल का निर्माण कराऊँ । स्वाभाविक ही है जिसके पास चार ऐसे होते हैं उसके मन में उसे खर्च करने की तथा अपना नाम मशहूर करने की भावना होती है और उसका अंजाम होता है • मकान बनवाना, बाग-बगीचे लगवाना य । सैर-सपाटे करना । तो बादशाह के मन में जैसे ही यह भावना आई, एक लम्बा-चौडा स्थान राजमहल बनवाने के लिये चुन लिया गया। पर उस स्थान में अनेक व्यक्तियों के मकान थे। अतः वे कैसे हटाये जाते ? बादशाह ने उसके लिये भी अत्यन्त उदारभाव से घोषणा करवादी कि प्रत्येक मकान की एवज में उसका स्वामी जितना चाहे मूल्य ले ले और मूल्य न चाहे तो उससे कई गुनी अधिक जमीन ले ले। बादशाह ने अपने कर्मचारियों को कड़ी हिदायत करदी कि किसी से भी जबर्दस्ती न की जाय और अनीति भी न बरती

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