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आनन्द प्रवचन : भाग १
[२८]
((नेकी कर कूएँ में डाल!)
धर्म प्रेमी बन्धुओ माताओ एवं बहनो!
प्रत्येक मानव की आकांक्षा यही होती है कि संसार के सब व्यक्ति उसकी प्रशंसा करें, सराहना करें और मरने के बाद भी उसे स्मरण करें, अर्थात् वह अमर हो जाय।
पर यह क्या सरल बात है?ण्या उनके चाहने से ही ऐसा हो जायेगा? नहीं, अमर होने के लिए सर्वप्रथम उ#. अपनी इस चाह का अन्त करना होगा और उसके पश्चात् 'नेकी कर कुएँ में डाल' कहावत को चरितार्थ करना पड़ेगा।
इसका आशय आप समझ ही गए होंगे कि जो व्यक्ति नेकी के कार्य करता है उन्हें औरों के ऊपर किया गया एहसान न मान कर अपना कर्तव्य मानता है, वही संसार में प्रशंसा प्राप्त करता है तथा अपना नाम अमर कर जाता है। नेक भावनाओं का जन्म कब होता है?
मैं देखता हूँ कि आप प्रतिदिन । एक बड़ी संख्या में यहां इकट्ठे होकर शास्त्र श्रवण करते हैं, धर्मोपदेश सुनते हैं। पर, भावनाएँ सबकी भिन्न भिन्न प्रकार की होती होंगी। कुछ व्यक्ति इसलिये यहाँ आते होंगे कि गाँव में महाराज विराजमान हैं, अगर व्याख्यान सुनने नहीं गए तो लोग क्या कहेंगे? कुछ व्यक्ति यह सोचकर आते होंगे कि व्याख्यान सुनना अच्छी बात है। और थोड़ी देर अच्छे कार्य में समय बिता कर वे आत्म-संतुष्टि का अनुभव करते हैं। कुछ व्यक्तियों का स्वभाव होता है कि वे अपने व्यक्तित्व की छापा औरों पर डालना चाहते हैं, और इसीलिए यहां आते हैं कि लोग उन्हें धर्मात्मा सगझें। कुछ व्यक्ति महाराज के प्रिय-पात्र बनने के लोभ से भी आते हैं।
इस प्रकार मैं सोचता हूँ कि यहाँ आने वाले व्यक्ति अपनी भिन्न-भिन्न भावनाओं को लेकर यहाँ उपस्थित होते हैं। ऐसे व्यक्ति तो इन-गिने ही होंगे जो यहाँ बताई गई बातों को अर्थात् जिन-वचनों को यात्म-कल्याण के लिये अनिवार्य मानते होंगे तथा उन्हें ग्रहण करके ही लौटते होंगे।
किन्तु जो वास्तव में ऐसा करते होंगे, मैं समझता हूँ कि उन्हीं का धर्म-श्रवण करना सार्थक हो सकेगा। धर्मशास्त्र के श्रवण का सच्चा लाभ तभी हासिल होता