________________
• [३१५]
आनन्द प्रवचन : भाग १ समझ पाता कि संसार के जितने भी पदार्थ हैं उनमें से एक या वे समस्त इकट्टे होकर भी उसे दुखों से नहीं बचा सकते तथा सधे सुश्य की प्राप्ति नहीं करा सकते।
सुख आत्मा का गुण है और आत्मा में ही रहा हुआ है। बाह्य पदार्थों में खोजने से वह नहीं मिल सकता। अगर में उसे प्राप्त करना है तो समस्त पर-पदार्थों पर से अपनी ममता हटानी होगी। जैसे-जैसे हमारी आत्मा पर-पदार्थों से विमुख होकर अपने स्वरूप में निष्ठ होती जाएगी. वैसे ही वैसे वह सच्चे सुख सुख को प्राप्त करती जाएगी। भगवान् ने सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र और तप रूपी धर्म को मुक्ति का, अर्थात् शाज्ञात सुख की प्राप्ति का मार्ग बताया है। जो व्यक्ति इस मार्ग की आराधना करेगा अर्थात् वीतराग-प्ररूपित धर्म का आचरण करेगा वही अनन्त सुख का अधिकारी बनेगा तथा सामेवेत कर सकेगा कि -
“सव्वं सुहं धम्मसुहं निणाई।" धर्म-सुख सब सुखों में श्रेष्ठ है।