Book Title: Anand Pravachana Part 1
Author(s): Anandrushi
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 286
________________ • गुणानुराग ही मुक्ति-मार्ग है [२७६] अवसर पर प्रभु का स्मरण करना किसी की याद आता क्या? नहीं, उल्टे कट-वाक्यों के अविष्कार का प्रयत्न किया जाता। ऐसा क्यों होता? क्योंकि आपकी दृष्टि दोष-दृष्टि होती है। दूसरे के अपराध पर ही झटपट निगाठ जा सकती है। आपकी चतुराई में तो कोई कमी है नहीं! अनाज खरीदने के लिये अगर आप बाजार जाते हैं तो भले ही निन्यानवे दाने गेहूँ के अच्छे हों पर एक भी दाना घुना हुआ हो तो फौरन आपकी दृष्टि उसे पकड़ लेती है। दाने सभी तो सड़े हुए नहीं थे एक ही खराब था। पर उन सबको छोड़कर आपने सड़े हुए को ही क्यों देखा? क्योंकि बुराई जल्दी दिखाई देती है अच्छाई नहीं। अवगुण शीघ्र मिल जाते हैं, गुणों को खोजना पड़ता है। गुणों का महत्त्व गुण अपने आप में सम्पूर्ण होते हैं। उनमें कोई दोष नहीं होता जिसे हटाने की आवश्यकता होती हो तथा कोई अभा नहीं होता, जिसे पूरा करने की जरूरत पड़ती हो। इसलिये उन्हें किसी की सिफारिश की आवश्यकता नहीं होती। अपने पद से ही वे सब स्थानों पर आदर प्राप्त कर तेि हैं। कहा भी है : गुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते, पितृवंशो निरर्थकः। वासुदेवं नमस्यंति, सुदेवं न ते जनाः॥ गुणों का ही सर्वत्र सम्मान होता है पिता के वंश का नहीं। लोग वासुदेव (कृष्ण) की ही वन्दना करते हैं, उनके पिता कसुदेव की नहीं। गुणी व्यक्ति चाहे वह अमीर हो या गरीब, छोटा हो या बड़ा अपने गुणों के कारण ही प्रत्येक स्थान पर सम्मान प्राप्त करता है। चावल के पाँच दाने 'ज्ञाता धर्म कथा सूत्र' में गुण का महत्व बताते हुए एक उदाहरण दिया गया है - धन्ना सेठ के चार पुत्र-वाएँ थीं। "चारों बहुओं में से कौनसी बहू मेरे घर का भार संभालने लायक है इसकी परीक्षा की जाय।" यह विचार एक दिन सेटजी के मन में आया और उन्होंने चारों को अपने पास बुलाया। जब चारों वधुएँ उपस्थित हो गई तो उन्होंने प्रत्येक को शालि के पाँच-पाँच दाने दिये और कहा - "जब मैं इन्हें माँगू के मुझे वापिस देना।" । चारों अपने-अपने हाथों में चाकर के वे पाँच-पाँच एक सरीखे दाने लेकर अन्दर गई पर सबके हृदय में भावनाएँ अलग-अलग प्रकार की पैदा हुईं। बड़ी बहू ने सोचा .- 'ससुर : सठिया गए हैं शायद, जो घर में हीरे, पन्ने, मोती, माणिक तथा अतुल धन-राोश के होते हुए भी बहुओं को चावल के दाने देने बैठे। उपर से तुर्रा यह की मांगने पर पुनः लौटाना होगा।" मारे क्रोध सामा

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