Book Title: Anand Pravachana Part 1
Author(s): Anandrushi
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 307
________________ • [२९७] आनन्द प्रवचन : भाग १ के पास भेजा। बेचारे सुदामा ने पत्नी को समझाने की बहुत कोशिश की। कहा "सुख-दुख करि दिन काटे ही बनेंगे भूलि; विपति परे पै द्वार मित्र के न जाइये। आजकल हम देखते ही हैं कि त्रिता कैसी होती है। वह समान श्रेणी वालों में तो कदाचित निभ भी जाए, पर असामान स्थिति वालों में कभी नहीं टिकती। दो मित्रों में से अगर एक विद्वान है और कारा मूर्ख, तो विद्वान मित्र उससे मित्रता बनाए रखने में अपनी हेठी समझता है। इसी प्रकार दो मित्रों में से अगर एक पर लक्ष्मी की कृपा हो जाती है तो वह अपने गरीब मित्र से सम्बध रखने में शर्म का अनुभव करता है तथा उससे आँखें फेर लेता है। इसीलिये सुदामा ने पत्नी को बार-कार समझाया था कि कृष्ण अब महाराज बन गए हैं और मैं एक दरिद्र ब्राह्मण हूँ। मेरे जैसे निर्धन व्यक्ति को विपत्ति पड़ने पर भी अपने अमीर मित्र के यहाँ नहीं जाना चाहिये। सुख और दुख के दिन तो काटने से ही कटेंगे। हमें किसी से याचना करना उचित नहीं है। तू मुझे बार-बार द्वारिका जाने का आग्रह मतकर। यह मत भूल ति : सिच्छक हो सगरे जग को लिय! ताको कहा अब देति है सिच्छा? जो तप के परलोक सुधारत, संपति कीतिन के नहिं इच्छा। मेरे हिये हरि के पद पंकज, बार हजार लै देखु परीच्छा। औरनि को धन चाहिये बावरि, ब्राह्मण को धन केवल भिच्छा ।। कितने सुन्दर विचार थे सुदामा त? क्या आज के ब्राह्मण इतने संतोषी, इतने निस्वार्थी और आध्यात्मिक भावनाओं के ऐसे धनी होते हैं? नहीं, किन्तु सुदामा ऐसे ही थे। तभी उन्होंने परेशान होकर पत्नी से कहा - " मैं तो स्वयं ही सारे जगत का शिक्षक हूँ तू मुझे अब ज्या उलटी पट्टी पढ़ा रही है? मेरे जैसा ब्राहाण व्यक्ति, जो कि जप, तप और ज्ञान-दान के द्वारा अपने परलोक को सुधारना चाहता है उसमें संपत्ति की लालसा कहाँ से अई?" "मेरे हृदय में तो धन की चाह के स्थान पर हरि के चरण-कमल ही चित्रित हैं। भले ही तू हजार बार परीक्षा लेकर देख ले। अरी बावली! धन तो और लोगों को चाहिये। ब्राह्मण को धन से क्या करना है? उसे तो भिक्षा मिल जाय बस यही काफी है। पर होता वही है जो होना होता है। ब्राह्मणी जिद पर तुली हुई थी अत: सुदामा को द्वारिका जाना पड़ा। अत्यन्त संकुचित होते हुए तथा शर्मिन्दगी महसूस करते हुए वे स्वर्गपुरी के समान द्वारिका नगरी में पहुँचे तथा द्वारपाल से अपने आने का समाचार महाराजा कृष्ण के पास भिजवाया। पर उसके बाद क्या हुआ?

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