Book Title: Anand Pravachana Part 1
Author(s): Anandrushi
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 316
________________ • धर्म का रहस्य [३०६] हुए उत्तर दिया। "प्रोफेसर साहब हँस पड़े और बोले - 'तब तो समझलो कि तुम्हारा चौथाई जीवन पानी में गया।" मल्लाह चुप रहा। थोड़ी देर बाद प्रोफेसर ने नाविक से दूसरा प्रश्न किया-1 "क्या तुम कुछ भी नहीं पढे हो?"! "मैंने कुछ भी नहीं पढ़ा बाबू जी!"। "तब तो तुम्हारा आधा जीवन पानी में गया अमझों!" प्रोफेसर ने तनिक तिरस्कारपूर्वक कहा। नाविक तब भी मौन ही रहा। नाव चल रही थी पर प्रोफेसर में चुप नहीं रहा गया तो तीसरा प्रश्न फिर कर बैठे। नदी के किनारों पर खडे हुए सुन्दप्र वृक्षों की ओर देखते हुए बोले। __ क्या तुम वनस्पति विज्ञान के विषय में जानते हो?। नहीं बाबूजी! मैं तो केवल यह जानता हूँ कि नाव कैसे चलाई जाती है। मल्लाह बेचारा सब कलाओं के जानकार 'प्रोफेसर से और क्या कहता। सीधा-सा उत्तर दे दिया। पर उसका उत्तर सुनकर प्रोफेसर ठहाका मारकर हँस पड़े और बोले - भाई! तब तो तुम्हारे जीवन का तीन चौथाई भाग पानी में चल गया। मल्लाह ने अपने जीवन के इतने बड़े भाग के पानी में चले जाने की बात सुनकर भी कोई चिन्ता नहीं की, चुपचाप पतवार चलाता रहा। संयोगवश अकस्मात् भयानक आँधी चल पड़ी और नदी में बड़ी बड़ी लहरें उठने लगीं। नाव बुरी तरह डगमगाने लगी और उसमें पानी भर गया। मल्लाह ने अपने दोनों हाथोंसे पानी उलीचने का प्रयत्न किया पर असफल रहा। क्योंकि ज्योंही तेज हिलोरे आती, पानी पुन: भर जाता। आखिर जब उसे नाव डूब जाने का खतरा दिखाई दिया तो वह नाव से कूद पड़ा और तैरने लगा। प्रोफेसर के होश फाख्ता हो गए, पर करते क्या? शोरगुल मचाते रहे। नाविक ने तैरते-तैरते उनसे पूछा - "बाबूजी! आपने मुझसे कई प्रश्न पूछ लिए अब मैं भी आपसे एक प्रश्न पूछता हूँ। बताईये - आप तैरना जानते हैं या नहीं?" भयाकुल प्रोफेसर ने उत्तर दिया - अरे भाई! अगर मैं तैरना जानता तो तुम्हारे साथ ही कूदकर तैरने नहीं लगता क्या!" "तो समझिये कि आपकी सारी उमा पानी में गई"। नाविक ने उत्तर दिया और इसके साथ ही प्रोफेसर साहब जल मग्न हो गए।

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