Book Title: Anand Pravachana Part 1
Author(s): Anandrushi
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 322
________________ • धर्म का रहस्य [३१२ कौशल राज की यह बढ़ती हुई कीर्ति काशी के महाराज से सहन नहीं हुई और उन्होंने कौशल पर चढ़ाई करदी। युद्ध में कौशलराज हार गए और वे जंगल की ओर भाग गए। कौशलराज की हार से लोगों में हाहाकार मच गया। और सब काशीराज को कोसने लगे। काशीराज को यह गुन-सुनकर और भी क्रोध आया, तथा उन्होंने ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो व्यक्ति कौशलराज को जीवित अथवा मृत पकड़कर लाएगा उसे एक हजार अशर्फियौँ इनाम दी जाएंगी। उधर कौशलराज जंगल-जंगल में फटेहाल फिर रहे थे। एक दिन एक दरिद्र वणिक ने उनसे कौशल का रास्ता पूछा। राजा ने कहा ....... "उस मागे देश में क्यों जा रहे हो भाई? वणिक ने राजा को बिना पहचाने अपनी धन-हानि और दुर्दशा की कहानी सुना दी। सुनकर राजा के नेत्र सजल हो गए। कुछ क्षणों तक तो वे चुपचाप सोचते रहे। उसके पश्चात् वणिक से बोले - "चलो, तुम्हारी मनोकामनापूर्ति का मार्ग बताऊँ।" जटाजूट बढ़ाए और फटे कपड़े पहने हुए कौशलराज उस वणिक को लेकर काशिराज के दरबार में पहुँचे। और बलेि - "काशीराज! मैं ही कौशल का भूतपूर्व राजा हूँ। मुझे पकड़कर लाने वाले के लिए आपने जो इनाम घोषित किया है वह मेरे इस साथी को प्रदान करें तथा मुझे पकड़ने की आज्ञा अपने सिपाहियों को सारी सभा में सन्नाटा छा गया और काशी के महाराजा कौशलराज की ऐसी उदारता देख कर दंग रह गए। कुछ क्षण स्तंभित रहने के बाद वे शान्तिपूर्वक बोले - "कौशलराज! लोग तुम्हें जितना उदार और धर्मात्मा मानते हैं, तुम उससे भी अनेक गुना अधिक हो। धन्य है तुम्हें। मैं तुम्हें तुम्हारा सम्पूर्ण राज्य आदरपूर्वक लौटाता हैं, साथ ही अपना हृदयनी देता हूँ। अब इसी सिंहासन पर बैठकर इस वणिक को जितना चाहो धन प्रदान करो। बन्धुओ, यह शक्ति किसकी थी? धर्म की ही न? अन्यथा कौशलराज के पास क्या था? न राज्य, न सता, न धन और न सैन्यबल ही था। केवल आत्मबल और दूसरे शब्दों में जिसे उर्मबल कहा जाता है वही बचा था। काशीराज चाहता तो निहत्थे और निर्बल कौशलाज को उसी क्षण मृत्यु के घाट उतरवा सकता था। किन्तु कौशलराज के धर्मबल के समक्ष उस समस्त बाह्य सत्ताधारी शासक को झुकना पड़ा। हमारे शास्त्रों में भी ऐसे अनेक उदाहरण आते हैं, जिनमें धर्म पर दृढ़ रहने वाले सुदर्शन सेठ, अरणक श्रागत तथा कामदेव आदि श्रावकों के धर्मबल ने

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