Book Title: Anand Pravachana Part 1
Author(s): Anandrushi
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 306
________________ जन्माष्टमी से शिक्षा लो! [२९६] मैया, कबहिं बढ़ेगी चोटी? किती बार मोहि दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी। तू जो कहति बन की बेली ज्यों व लांबी मोटी। काढत गुहत न्हवायत जैहं नागिनि स भुई लोटी॥ काचौ दूध पियावत पचि-पचि, देति न माखन रोटी। सूरदास चिरजीवो दोउ भैया, हरि हलथर की जोटी। कहते हैं - "माँ, मेरी यह चोटी कब बढ़ेगी? कितने दिन हो गए मुझे दूध पीते हुए, पर अभी भी यह छोटी को ही है। तू तो कहती थी न, कि यह नागिन के जैसी बड़ी हो जाएगी और मुत्र नहलाते तथा इसे गूंथते समय जमीन पर लोटेगी। पर यह तो अभी तक बढ़ी कहीं। लगता है कि तू मुझे कचा दूध ही पिलाकर टरका देती है, मक्खन-रोटी नहीं खिलाती इसलिए इसका यह हाल कितनी चतुराई से अपनी बात कही है उन्होंने? पर यह सब वे अपने लिए ही नहीं करते थे। अपने घर में और : गोकुल के अन्य घरों में जितना भी मक्खन और दही उन्हें मिल जाता, लेजाकर अत्यन्त उदारतापूर्वक गायें चराने वाले ग्वाले बालों को बाँट देते थे। वीरता भी उनमें कम नहीं थी। कहते हैं कि बचपन में ही उन्होंने कई राक्षसों का संहार किया था और यमुना वे समस्त जल को दूषित करने वाले कालिय नाग को नाथा भी। बड़े होने पर तो संसार के सामने उन्होंने ऐसे आदर्श उपस्थित किये, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। गीता के रूप में उन्होंने मानव को कर्म करने की जो प्रेरणा दी वह आज भी जगत के अमूत्र्य ग्रंथ के रूप में सुरक्षित है और भविष्य में भी रहेगी। अगर व्यक्ति उसे पढ़े और पढ़कर अपनाए तो निश्चय ही अपनी आत्मा का कल्याण कर सकता है। मित्रता का अद्वितीय आदर्श मित्र के रूप में भी कृष्ण एक आदर्श पुरुष साबित हुए । उनके जैसे मैत्री भावकी मिसाल संसार में मुश्किल से ही मिलती है। उनके मित्र सुदामा और वे स्वयं बचपन में संदीपनि ऋषि के आश्रम में साथ ही पढ़ते थे। बड़े होने पर सुदामा तो अपने कुलोचित कार्य अध्यापन में लग गए और कृष्ण द्वारिकाधीश होकर राज्यकार्य करने लगे। पर आप जानते ही हैं कि विद्या और लक्ष्मी एक ही स्थान पर निवास नहीं करती। इस नियम के अनुसार सुदामा दा फटे-हाल ही बने रहे और जब उनकी पत्नी ऐसी अवस्था से परेशान हो गई तो उसने सुदामा को जबर्दस्ती कृष्ण

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