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• सर्वस्य लोचनं शास्त्र...
[२८६) जैसे बुद्धि के धनी पुरुष भी अपने फिता महाराज श्रेणिक को वंदन करने जाया करते थे। तथा रघुकुल शिरोमणि राम की कथा तो आज जगत प्रसिद्ध ही है, जिन्होंने पिता के वचन की रक्षा के लिी चौदह वर्ष तक वन में घोर कष्ट सहन किये। उदाहरण कहाँ तक दिये जायें? कालक श्रवण को आज भी हम याद करते हैं और कल की दुनियाँ भी इसी प्रकार गद्गद् होकर स्मरण करेगी, जिसने अपने अंधे माता-पिता को कंधे पर रखी हुई डोली में बैठाकर तीर्थयात्रा कराई थी।
बालक आज भी वैसे ही होते हैं और उन्हें जन्म देने वाले माता-पिता भी। पर कमी केवल संस्कारों की होती है। अत: मेरा आप लोगों से यही कहना है कि अपने माता-पिता गुरु व गुरुजनों की भक्ति तथा सेवा का आप स्वयं आदर्श उपस्थित करें। ताकि आपके बालक बिल आपके सिखाये ही नम्रता का पाठ पढ़ें तथा बड़ों के समक्ष नत होकर अपने उत्तमांग की शोभा बढ़ाएँ।
श्लोक में आगे जबान की शोमा के विषय में बताया गया है कि जबान की शोभा सत्य बोलने में है । हमारे आज के भाई पान के बीड़े खाकर मुँह लाल करने में, फिल्मी गीत गाने में या बेसिर पैर की हॉककर लोगों को प्रभावित करने में ही इनकी शोभा मानते हैं। तथा इससे आगे बढ़ते हैं तो असत्य-भाषण कर औरों को बेवकूफ बनाते हुए किसी न किसी प्रकार अपना उल्लू सीधा करने में ही अपनी जबान की चतुराई समझते हैं।
वे भूल जाते हैं कि असत्य वा वचनों का बल प्रदान करके जितना ऊँचा उठाया जाता है, उतनी ही ग्लानि, उतना ही पाप रूपी कीचड़ और उतना ही अनाचार उसके नीचे इकट्टा हो जाता है। सिक्खों के धर्मशास्त्र में कहा है :
"कहे नानक जिन सच तजिया, कूड़े लाग उनी जन्म जुए हारिया।"
- रामकली मोह ३ अनन्द गुरु नानक कहते हैं कि जिन लोगों ने सत्य को त्याग कर असत्य को अपना लिया, उन्होनें मानों अपना जन्म ही जुए में हार दिया। और सत्य कितना महान होता है गाह शेखसादी ने बताया है :
"रास्ती मूजिब रमाए खुदास्त,
कस न दीदम कि गुम शुद अजराहे रास्त।" - अर्थात् सत्य ईश्वर की इच्छा के अनुकूल हैं। मैंने सत्य के मार्ग पर चलने वाले को कभी पथभ्रष्ट होते नहीं ठेखा।
इसलिये प्रत्येक मानव को असत्य का त्याग करके सत्य भाषण से ही