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सर्वस्य लोचनं शास्त्र...
धर्मार्थकाममोक्षाणाः] मूलमुक्तं कलेवरं । "
- धर्मकल्पद्रुम
धर्म का धन का विविध इच्छाओं का और मोक्ष का साधन यह शरीर ही
करे श्लाघ्यस्त्यागः शिरसि गुरुबाद प्रणमनम् । मुखे सत्या वाणी श्रुतमधिगतं व श्रवणयोः ॥ हृदि स्वच्छावृत्तिर्विजयि भुजयां : पौरुषमहो । विनाप्यैश्वर्येण प्रकृति महतां गंडनमिदम् ॥
है।
शरीर से लाभ कैसे लिया जाय ?
वस्तुतः इस शरीर और इन्द्रियों का लाभ वही मनुष्य ले सकता है जो इनका सदुपयोग करे। एक श्लोक में कहा गया है :
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कहा गया है अगर हमें अपने शरीर के लिये हाथों की प्राप्ति हुई है तो इनसे दान करो। हाथों की शोभा दान करने से बढ़ती है, कंकण पहनने से नही। आभूषण तो ऐश्वर्य का प्रदर्शन करते हैं किन्तु दान सदगुणों का प्रतीक माना जाता है।
इसी प्रकार अगर हमें मस्तक के समक्ष झुकाकर उसकी भी शोभा ही मस्तक की सार्थकता है। आज के के चरणों में मस्तक झुकाने का तो जैसे रिवाच ही नहीं रहा है।
मेला है तो माता-पिता, गुरु तथा गुरुजनों बढ़ाओ ! बड़ों के चरणों में नमन करने से युग में माता-पिता, गुरु या किसी भी बड़े
हमारे पास बच्चे आते हैं। हम कभी उनसे पूछ भी लेते हैं भाई, माता-पिता को प्रणाम करते हो ?"
"क्यों
बच्चे उत्तर में गर्दन हिलाकर नकारात्मक उत्तर दे देते हैं। अगर हम उनसे "हमें पुनः प्रश्न करते हैं "क्यों नहीं करते ?" तो वे यही उत्तर देते हैं
शर्म आती है।"
कितने दुख की बात है ? छोट-छोटे बालक भी बड़ो को प्रणाम करने में शर्म का अनुभव करते हैं पर आगे जाकर इसका परिणाम क्या होगा. आप जानते हैं? यही कि जो मस्तक बाल्यावस्था में माता-पिता के समक्ष नहीं झुका वह स्कूलों और कालेजों में अपने शिक्षकों के सामने कब झुकेगा। कभी नहीं झुकेगा, तथा अहंकार से तनी हुई गर्दन के साथ अपने गुरुओं से वाद-विवाद करेंगे तथा उन्हें बुरी - भली कहेंगे।
किन्तु अगर निष्पक्षता से विकार किया जाय तो दोष आज के बालकों का नहीं है, वरन स्वयं उनके माता नेता का ही है। अगर वे चाहें तो अपने