Book Title: Anand Pravachana Part 1
Author(s): Anandrushi
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

View full book text
Previous | Next

Page 250
________________ • बलिहारी गुरु आपकी... [२४०] सकते हैं। जो धन लेकर अथवा अन्य किसी स्वार्थ साधन के उद्देश्य को लेकर शिक्षा प्रदान करते हैं, किन्तु वह शिक्षा या ज्ञान मानव के जीवन को वैसा महान नहीं बना सकते जैसा कि सदगुरु बिना लिसी भी स्वार्थ या लोभ-लालच के ज्ञान-दान देकर बना सकते हैं। सचे गुरु की एक और बड़ी भारी विशेषता यह होती है कि उनकी दृष्टि में सभी ज्ञानार्थी समान होते हैं। सभी पर उनका वात्सल्य भाव एकसा रहता है। चाहे छात्र हो या शिक्षक, अमीर हो या। गरीब, ऊँची जाति का हो या नीचीजाति का, वे समान स्नेह-पूर्वक उसे अपनाते हैं। तथा ज्ञान-दान देते हैं। एक उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाता है। ज्ञानाभ्यास जरूर कराऊंगा! कहते हैं कि एक गरीब देश्या का बालक जो कि ज्ञान-प्राप्ति का बड़ा इच्छक था अपनी मां से बोला - "मझे ज्ञान प्राप्त करना है. मै उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहता हूँ।" पत्र की बात माता को अत्यन्त प्रिय लगी पर एक तो अर्थाभाव दुसरे अपने बालक को अकुलीन समझकर डस्ने लगी कि इसे कौन पढ़ाएगा? फिर भी उसने हिम्मत करके अपने पुत्र को स्कूल में भर्ती होने के लिए भेजा। पर परिणाम वही निकला जिसकी उसे आशंका थी। प्रद्यपि वह बहुत काल से अपनी वेश्यावृत्ति का त्याग कर चुकी थी किन्तु फिर भी वेश्या-पुत्र मानकर उसे किसी भी स्कूल या पाठशाला में स्थान नहीं दिया गया। माता बहुत ही निराश हुई पर दुबारा साहस करके उसने पुत्र को एक संत के पास ज्ञानाभ्यास करने के लिये भेजा। लड़का धर्मगुरु के पास आया और अत्यन्त विनयपूर्वक बोला - 'गुरुदेव! मुझे आप ज्ञान-दान देंगे क्या?' । संत ने बालक की विनयशीलत। और ज्ञान-प्राप्ति की तीव्र अभिलाषा को पहचानकर कहा- "बेटा! तुम अपने फिता की अनुमति लेकर आ जाओ मैं तुम्हें विद्याभ्यास कराऊँगा!" संत की बात सुनकर बालक कार चेहरा उतर गया तथा उसकी आँखों में आँसू भर आए। सँधे हुए कण्ठ से वह बोला - "भगवन्! मेरे पिता को तो मैं पहचानता भी नहीं हूँ तथा मेरी मां को भी उनका नाम मालूम नहीं है। यही मां ने मुझे आपसे कह देने के लिए कहा है।" पलक झपकते ही संत सारी बा समझ गए। अत्यन्त दयार्द्र होकर तथा बालक व उसकी माता की सत्यवादिता से प्रभावित होकर उन्होंने बालक के मस्तक पर हाथ रखकर कहा - "कोई बात नहीं वत्स! तुम कल से समय पर विद्याभ्यास

Loading...

Page Navigation
1 ... 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346