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• अमरता की ओर!
[२१८] दिखावा नहीं चल सकता। बिना भावना ले किये हुए सभी धर्म-कार्य शून्य के समान साबित होते हैं। तथा ऐसे धर्मात्मा की श्वर के यहाँ कोई कद्र नहीं होती। सचा धर्मात्मा और सचा भक बनने के लिए बड़ा भारी त्याग करना पड़ता है तथा कभी-कभी तो जीवन का मोह भी छोड़ना होता है। सचा भक्त बनना सरल नहीं है, बड़ी टेढी खीर होती है। पापी मर जायेगा
कहते हैं काशी के घाट पर ग्रहण के अवसर पर एक बार बड़ा भारी मेला लगा तथा उसमें शिव और पार्वती भी आए।
महादेव और पार्वती ने देखा कि लाखों की संख्या में अपने आपको भक्त कहलवाने वाले व्यक्ति पूजा-पाठ, यज्ञ, जोम तथा अन्य नाना प्रकार की धार्मिक क्रियाएं कर रहे हैं तथा तिलक-छापे लगाकर भारत बने बैठे हैं।
कौतूहलवश शिवजी और पार्वती की इच्छा हुई कि यहाँ परीक्षा की जाय, भक्तों की इतनी बड़ी संख्या में सधा भक्त कौन है?
यह विचार कर शिवजी साधारण व्यक्ति के रूप में मृतप्रायः से लेट गये और पार्वती उनके पास अत्यन्त शोकमा होकर बैठ गई। पार्वती ने अपने पति के मृत्यु सम्बन्ध में लोगों को बतलाया और कहा – जो निष्पाप भक्त होगा, वही मेरे पति को स्पर्श करके इन्हे जीकिन कर सकता है। कृपा करके आप लोगों में से जो भी निष्पाप और सच्चे भक्त म मेरे पति को स्पर्श करके इन्हें जीवित करें, किन्तु एक बात है कि पापी होगा वह इस शव को स्पर्श करते ही मृत्यु को प्राप्त हो जायगा।"
मेले में जितने भी भक्त आये सभी अपने आपको सचा भगत मानते थे किन्तु पार्वती की बात सुनकर किसी ने भी शिवजी के शव को स्पर्श करने । का साहस नहीं किया। और सब एक के बाद एक धीरे-धीरे वहाँ से खिसक गए। मरने के लिये कौन तैयार होता?
किन्तु सबसे अन्त में बचा हुआ एक हरिजन बोला - "देवी ! मैं शीघ्र ही स्नान करके आता हूँ, फिर आपके पति को स्पर्श करने की कोशिश करूँगा।"
हरिजन लगभग दौड़ता हुआ सा गाया और अत्यन्त श्रद्धापूर्वक गंगास्नान करके लौट आया। आते ही उसने महादेव के शव को स्पर्श किया और स्पर्श करते ही वे उठकर खड़े हो गये।
बन्धुओ, इस उदाहरण से स्पष्ट है। गया होगा कि भक्त और धर्मात्मा कहलाने वाले तो अनेक होते हैं किन्तु सच्चा भक्त और धर्मात्मा गुदड़ी के लाल के समान विरला ही मिलता है। धर्म का दिखावा मात्र करने से ही कोई धर्मात्मा नहीं बन पाता।