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• अमरता की ओर!
[२१०] से अनभिज्ञ होते हुए भी ज्ञानी ही कहलाते हैं।
और तीसरे प्रकार के व्यक्ति तो आगम का गहन ज्ञान करते ही हैं। साथ ही सत्य का आत्मानुभव भी करते हैं अत: वे ज्ञान-प्राप्ति और जीवन में उसका उपयोग भी करने के कारण श्रेष्ठतम मा जाते हैं। इसी प्रकार प्रत्येक मानव को अपनी आत्मा में ज्ञान की दिव्य-ज्योति जलाकर आत्मा के शुध्द स्वरूप का साक्षात्कार करना चाहिए तथा जन्म-मरण के दुःखों से मुक्त होने का प्रयास करते रहना चाहिए। ऐसा करते रहने पर कोई कारण नहीं है कि कालांतर में आत्मा मुक्त न हो। शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है :
"जाना-मोक्ष:" सम्यक्ज्ञान प्राप्त होने पर ही मोक्ष करि प्राप्ति हुआ करती है।
तो मैं बता यह रहा था कि जो आत्मा सम्यक्ज्ञान प्राप्त कर लेती है तथा उसमें रमण करती है वह ज्ञान-आत्मा कहलाती है। जिन भव्य प्राणियों का हृदय चिन्तन, स्वाध्याय और तात्विको आदि में रस लेता है. ज्ञान-प्राप्ति में तल्लीन हो जाता है उस समय उसकी आत्मा स्तान-आत्मा के रूप में रहती है। ६. दर्शन-आत्मा
दर्शन यानि श्रध्दा। जिसकी अज्दा दृढ़ होती है, उसे देवता भी आकर चलायमान करना चाहें तो नहीं कर पाते।। अरणक श्रावक के विषय में आप जानते ही होंगे। वे जब समुद्रयात्रा कर रहे तब मिथ्यात्वी देवता ने आकर उनसे धर्म-त्याग करने को कहा और उसका त्याग न करने पर उनके जहाज को भयंकर हिचकोले देते हुए डुबाने की धमकी दी। किन्तु क्या वे चलायमान हुए? उनकी श्रध्दा रंचमात्र भी कम हुई? नहीं। इसी प्रकार कामदेव श्रावक को भी अपने धर्म से च्युत करने के लिए देवता ने तीन प्रकार के संकटों में डाला। भयंकर पिशाच, हाथी और सर्प के रूप में आकर डराने संशेर डिगाने का प्रयत्न किया किन्तु तिलमात्र भी डिगा नहीं सका। यह क्यों? इसलिये कि उनकी दर्शन-आत्मा सर्वथा शुध्द थी। उनकी श्रध्दा मजबूत और अडोल थी। वे जानते थे कि उपसर्ग से उनके शरीर का नाश हो सकता है, पर आम्मा का नहीं। श्रध्दा की शक्ति के द्वारा ही वे संकटों और पापों का मुकाबला करने के लिए तैयार होते हैं तथा उन पर विजय प्राप्त करते हैं। महाभारत में कहा भी गया है :
"जहाति पापं श्रध्दावान् सर्वो जीर्णमिव त्वचम्" श्रध्दावान पुरूष पापों का इस प्रकार परित्याग कर देता है जैसे सर्प अपनी जीर्ण-शीर्ण केंचुली का त्याग करता है।
महात्मा गाँधी जी ने भी श्रध्दा का बना महत्व बताया है। कहा है - "श्रध्दा का अर्थ है आत्म-विश्वान और आत्म-विश्वास का अर्थ है ईश्वर