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यही सयानो काम !
[१६०] अन्त में कवि ने कहा है :
जब तक ठीक टाइम ये की, अपनी सुधार नर तन खेती। .
देता चौथमल यह ज्ञान । मले जब तक ही अच्छा मान। कविता के अन्त में मुख्य बात बताई गई है, जिसे समझना और उसके अनुसार प्रत्येक आत्मोन्नति के इच्छुक प्राणी को आचरण करना आवश्यक है। कवि ने कहा है 'यह मानव शरीर रूपी घड़ी जब तक ठीक चल रही है अपनी खेती सुधारनी है तो सुधार लो। अर्थात् जा तक यह शरीर चलता है, इससे शुभ-कर्मों का उपार्जन करो। अन्यथा कचा घड़ा। जिस प्रकार तनिक सी ठेस लगते ही फूट जाता है तथा उसमें भरा हुआ जल बह जाता है। उसी प्रकार शरीर रूपी घड़े के नष्ट होते ही आयुष्य-रूप जल समाप्त हा जाता है।
इसलिए अपने इस अमूल्य मानव-भव का एक क्षण भी बुद्धिमान व्यक्ति को व्यर्थ में नहीं खोना चाहिये। जो व्यक्ति इस बात को समझ लेते हैं वे अपने जीवन को सार्थक करने में अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा देते हैं। वे भली-भाँति समझ लेते हैं कि
"शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।" यह शरीर धर्म का साधन है।
इसीलिये सुज्ञ-पुरूष अधर्म अगवा पाप के निमित्त इसका उपयोग नहीं करते। वे अपने विवेक को जागृत रखते हैं तथा आत्मा की अनन्त शक्ति पर विश्वास रखते हुए दान, भक्ति, ज्ञान, योग, राग्य और सदाचार आदि साधना के जितने भी साधन हैं, उन सबका उपयोग करते हुए अपने गंतव्य की ओर बढ़ते हैं। परिणाम यह होता है कि कालांतर में वे निश्चय ही अजर-अमर पद को प्राप्त होते हैं तथा शाश्वत सुख में रमण करते हैं।