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• अब थारी गाड़ी हैंकबा में
[१७४] से भी आप चाहे जिस और जा सकते हैं, किन्तु आवश्यकता है टिकट लेने की। ध्यान रखिये, कि इस जंक्शन से आपको नरक गति का, मनुष्य-गति का, देव गति का और पाँचवीं मोक्ष-गति का भी टिकिट मिल सकता है। अर्थात यहाँ से आप किसी भी गति में जा सकते हैं, पर महत्त्वपूर्ण बात है उसका टिकिट प्राप्त करना।
मैं जानता हूँ कि आप में से कोई व्यक्ति कम से कम नरक और तिर्यंच गति के विषय में तो सोचना भी नहीं चाहेगा। बाकी बची तीन गतियां। मनुष्य, देव और मोक्ष-गति। यदि आपकी इच्छित गतियों हैं और इनमेंभी श्रेष्ठतम है मोक्ष-गति, जिसे पाने के लिये आप क्षणभर में ही तैया हो जाएँगे! पर तैयार हो जाने से ही तो वहाँ जाया नहीं जा सकेगा। उसके लिए टिकट लेना पड़ेगा और वह टिकट धन देकर नहीं मिलेगा, उसके लिये महान श्रम, पुरुषार्थ और त्याग करना पड़ेगा। मोक्ष-गति का टिकिट प्राप्त करने की योग्यता किसमें होती है इस विषय में कहा गया है"मोहो विनिर्जितो येन स एक्तिपदमर्हति।"
-- विवेकचूड़ामणि ---- जिस आत्मा ने सोलह कषाय और नव नोकषाय रूप मोह-विकार को पूर्णरुप से जीत लिया है, और मोह का जड़-मूल से ही नाश कर दिया है, वही आत्मा मोक्षपद को प्राप्त करने के योग्य है।
कितनी सुन्दर और सत्य वात है। वास्तव में ही उच-गति के टिकिट प्राप्त करना सरल बात नहीं है। पूर्ण इच्छा होने गर भी और जंक्शन पर बैठे रहकर भी संभव है कि हम जीवन भर में भी इंछित गंतव्य के टिकिट प्राप्त न कर सकें।
जंक्शन पर हम बैठे हैं। अर्थात् मनुष्य पर्याय हमे प्राप्त हो चुकी है किन्तु वह भी तो चली जा रही है और अभी हमर टिकिट का पता ही नहीं है। इसी को लक्ष्य में रखकर श्री कुमुदमुनि ने लिखा है ---- जग उठरे, जग उठरे, जग उठो म्हारा छातुर पावणां,
अब शारी गाड़ी हैकबा में। पल पल में थारी उमर जावे, मौत पागाधी आवे जिवडा मोह नींद रे वश में सूग्यो भूल आपणो पथ जिवड़ा
अब धारी गाड़ी हैकबा में। मुनियों से उपदेश न मान्यो, धर्मस्थान हिं आयो जिवड़ा बीती सो तो बीत गई रे, अब थने चेतायो जिवड़ा
अब चारी गाड़ी हंकबा में। इस सुन्दर भवन में आत्मा को सन्धोधन करके कहा गया है - 'मेरे