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भावना और भक्ति
अगर है शौक मिलने का,
तो हरदम लौ लगाताना। जलाकर, खुदनुमाई को,
भसम तन पर लगातार मा। र मर भूखा, न रख रोजा
न जा मस्जिद न कर सजदा, खजू का तोड़ दे कूजा,
शराबे-शौक पीता था। अगर है। कहा है - अगर तुझे ईश्वर से मिलने की तमन्ना है तो प्रतिपल उसके ध्यान में रह, उसकी भक्ति में ऐसा तल्लीन हो जा कि अपने आप को भूल सके। अपने आप को जलाकर खाक करदे और उप्रो की भस्म तन पर लगा ले। तुझे भूखे मरने की तथा रोजे रखने की आवश्यकता नहीं हैं, न ही मस्जिद में जाकर सिजदे करने की जरूरत है। तू तो ईश्वर बी, खुदा की भक्ति रूपी शराब पीता रह तथा उसी में छका रह जिससे बेड़ा पार होगा।
बंधुओ, भक्ति का माहात्म्य ऐसा ही है। कहने में उसका अर्थ छोटा-सा लगता है पर शक्ति उसमें बड़ी जबर्दस्त और चमत्कारिक होती है। भक्ति ही एक ऐसी चीज है जो भगवान को भी अपने वश में कर लेती है। श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों के प्रति आंतरिक एवं असीम स्नेह-पूर्ण झुंझलाहट व्यक्त करते हुए कहा है।
नाना भाति नचायो भक्तों ने मोहे - लोक-लाज तज इन्हीं काज मैंने वैकुंठ। विसरायो - भक्तों ने मोहे
नरसी भक्त काज मैं सांवरिया सेठ बन्यो, भात पहिरायो लाज राखी जन की। प्रहलाद ने बुलायो नरसिंह रूम धर्यो,
हिरणा-कश्यप विदार्यो सुधिनभूल्यो तन की। छोड़ मिठाई दुर्योधन की साग विदुर धा खायो...भक्तों ने मोहे
गज ने पुकार्यो तब गरुड़ बिसार्यो, जाय ग्राह को संभायो सुनिमि की पुकार। जब द्रौपदी बिचारी, बोली-धाओ गिरधारी!
मोहे आस है तुम्हारी और जाऊँ काके द्वार? टेर सुनी तो करी न देरी, जाकर चीर बहायो...भक्तों ने मोहे
बंधुओ, पद्यों का अर्थ आप समझ ही गए होंगे। भक्त इसी प्रकार अपने भगवान को नाना प्रकार से नाच नचाया करते हैं तथा उनकी भक्ति की शक्ति से खिंचकर भगवान को उनकी सहायता करनी पड़ती है। यह भक्ति का तथा दूसरे शब्दों में शुभ क्रियाओं का और उत्तम भावनाओं का ही प्रभाव होता है।
इसीलिये मेरा कहना है कि हमें मन्य-जन्म मिला है तो भक्ति-मार्ग की