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• जाणो पेले रे पार
[११८] सोना चाहिये और किसे जागना चाहिये? उन्होंन कहा है -
सोता साध जगाईये, कौ नाम का जाप ।
यह तीनों सोते भले, साकत, सिंह औ सांप।।
वास्तव में ही विषधर प्राणी अधिक समय तक सोते रहे तो अच्छा किन्तु संत, महात्मा और साधक को तो अल्प-नेद्रा लेकर ही जाग उठना चाहिये। ताकि वे अपने समय का सदुपयोग कर सकें तथा शांतचित्त से धर्माराधन कर सकें।
प्रमाद मनुष्य के जीवन का सबम बड़ा शत्रु है। जो व्यक्ति इसका शिकार हो जाता है वह जीवन में कदापि उन्नति नहीं कर सकता। नींद इसका प्रथम लक्षण है। यजुर्वेद में कहा है -
भूत्यै जागरणम् अभूत्यै स्वप्नम् । - जागना (ज्ञान) ऐश्वर्यप्रद है तथा सोना दरिला का मूल है।
अत: प्रत्येक मुमुक्षु को प्रमाद के द्वारा होने वाली हानियों को समझकर इस दोष से अपने आपको दूर रखने का प्रयला करना चाहिये। विकथा :
पाँचवां प्रमाद है विकथा करना। जिन बातों में कोई सार नहीं होता ऐसी बे सिर-पैर की तथा इधर-उधर की बातें करके व्यर्थ में ही कर्मों का बन्धन करना मनुष्य की अज्ञानता का लक्षण है।
कुछ व्यक्तियों की आदत होती है कि वे बिना प्रयोजन के ही स्त्रियों के सौन्दर्य, स्वभाव, चालढाल आदि के बारे में, देश और विदेश की भुतकाल या वर्तमानकाल की घटनाओं के विषय में, राज्य की अथवा सरकार की व्यवस्था. नियमादि के विषय में तथा यह सब न होने पर और कुछ नहीं तो सरस और नीरस भोजन सामग्री आदि के विषय में ही पलाप किया करते हैं। ऐसी निरर्थक बातें करते समय वे भूल जाते हैं कि इससे ऊर्म-बन्धन तो होता ही है, साथ ही उनका बहुत सा अमूल्य समय भी व्यर्थ चला जाता है।
बन्धुओ, यह मत भूलो कि कहीं हुए शब्द और बीता हुआ समय, ये पुन: लौट कर नहीं आ सकते। समय को तो संसार में सबसे शक्तिशाली अर्थात् परमात्मा से भी अधिक बलशाली माना जाता है। क्योंकि भक्ति साधना और पूजा आदि से भगवान को बुलाया जा सकता है पर बीते हुए समय को तो कोटि-प्रयत्न करके भी वापिस नहीं लौटाया जा सकता। भगवान महावीर ने इसीलिये गौतम स्वामी से बार-बार कहा -
'समयं गोयाम! मा पमायए' - हे गौतम ! समय मात्र का भी प्रसाद मत करो।