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आनन्द प्रवचन : भाग १ "क्यों नहीं आते?" उत्तर मिला। "तुम उनका आदर सत्कार करते हो?" अतिथि का सत्कार कौन मुर्ख नहीं करता?" " मान लो, तुम्हारी दी हुई वस्तुएँ अतिषि स्वीकार न करे तो कहाँ जायेंगी?"
भन्नाया हुआ व्यक्ति बोला - "जायेंगी कहाँ ? अतिथि नहीं लेगा तो क्या मेरे ही पास रहेंगी।"
"तो भाई! तुम्हारी दी हुई गालियाँ मैं स्वीकार नहीं करता।" बुद्ध ने परम शांति से कहा।
ब्राह्मण तथागत की यह बात सुनकर अत्यंत लशित हुआ और चुपचाप वहाँ से चला गया।
महापुरुष इसी प्रकार क्रोध की आग से अपने आपको तथा दूसरों को भी जलने से बचा लेते हैं। अन्यान सर्वसाधारण व्यक्ति तो अपना सर्वनाश कर लेता है। गीता में भी बताया गया है..
क्रोधाद् भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद बुद्धिनाशो, बुद्धिनाशातरणश्यति ।। -क्रोध से मूढता उत्पन्न होती है, मूक्षा से स्मृति भ्रांत हो जाती है। स्मृति भ्रांति से बुद्धि का नाश हो जाता है, और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है।
तीसरा प्रमाद अधिक निद्रा लेना है। वह भी मानव के लिए त्याज्य है। अधिक निद्रा लेने का परिणाम है धर्माराधन, ज्ञान-ध्यान आदि में कमी होना। स्वाभाविक ही है कि जो व्यक्ति प्रात:काल में देर तव्त सोता रहेगा वह ब्राह्ममुहुर्त में किये जाने वाले स्वाध्याय, ध्यान, प्रार्थना तथा पटन-पाठन आदि से वंचित रहेगा। यद्यपि यह सत्य है कि -
ब्रह्मचर्यतेाम्य-सुख-निस्पृहचेतमः।
निद्रा संतोषतृप्तस्य स्वकालं नानिवर्तते॥ - जो मनुष्य सदावारी है, विषय भोग से निस्पृह है, उसको समय पर निद्रा आए बिना नहीं रहती।
किन्तु दिन भर के शक्ति क्षय की पूर्ति तथा नवीन स्फूर्ति-ग्रहण के उद्देश्य की पूर्ति के अलावा जो व्यक्ति अधिक समय तक सोता है वह नाना प्रकार के शारीरिक व मानसिक विकारों का शिकार बनता है। किसी ने ठीक ही कहा है -
"निद्रा व्याधिग्रस्त की माता, भोगों की प्रिगतमा और आलस्य की कन्या है।" कबीर ने भी अपने एक पद्य में बड़े सुंदर ढंग से बताया है कि किसे