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कटुकवचन मत बोलो रे ने सोचा कि मेरे दरबार की विद्वानों से शोभा बढ़ जायगी। क्योंकि कहा जाता
लाख मूर्ख तजि राखिए, इक पंडित बुधधाम।
सर शोभा इक हंस सों, लाख काक केहि काम।। अर्थात् जिस प्रकार एक लाख कौमों के होने से भी सरोवर शोभा नहीं पाता, जितना शोभायमान वह एक हंस के होने से ही हो जाता है। उसी प्रकार लाख मूखों के होने से शोभा नहीं बढ़ती पून एक पंडित और बद्धिमान के कारण शोभा बढ़ जाती है। अत: लाख मूरों को छोड़कर भी एक पंडित को रखना अच्छा
राजा ने यही विचार कर अपने कमोबारियों को दोनों पंडितों के लिए समस्त सुविधाओं का प्रबंध करने के लिए तथा भजनादि का उत्तम प्रबंध करने के लिए आदेश दे दिया। पंडित आनन्दपूर्वक रहने लगे, किन्तु राजा से उनकी मुलाकात पुन: जल्दी नहीं हो पाई।
दो दिन, चार दिन, महीने, दो महिने। इसी प्रकार छ: महीने व्यतीत होने के पश्चात एक दिन वे राजा से मिले। प्राजा ने देखा कि एक पंडित तो पर्व की अपेक्षा दुर्बल हो गया है, और दूसरा हृष्ट पुष्ट। आश्चर्यपूर्वक राजाने पूछा - क्या आप लोगों को यहाँ कोई कष्ट है? नहीं राजन! आपके यहाँ हमें किस प्रकार का कष्ट ? कोई तकलीफ नहीं हैं। पंडितों ने उत्तऽ दिया।
फिर आप लोगों के शरीरों में ऐसा परिवर्तन क्यों हुआ कि आपमें से एक तो दुर्बल हैं और दूसरे स्वस्थ?
राजा की बात सुनकर स्वस्थ और पुष्ट हो जाने वाले पंडित ने कहा - "महाराज! मेरे हृष्ट-पुष्ट हो जाने के दो वारण हैं। एक तो आपके यहाँ भोजनादि का उत्तम प्रबंध है दूसरे यहाँ मुझे दुःख हीं है। मेरे घर पर मेरी पत्नी कर्कशा और झगड़ालू है। एक दिन भी शांति से नहीं रहने देती थी मुझे रोज उसकी गालियाँ सुननी पड़ती थीं। अब आप समय ही गए होंगे कि प्रथम तो आर्थिक अभाव के कारण और दूसरे स्त्री के दुःख से घबराकर मैंने घर छोड़ दिया था। विद्वानों का कथन भी है :
माता यस्य गृहे नास्ति भार्या जाऽप्रियवादिनी। अरण्यं तेन गन्तव्यं यथारण्यं था गृहम् ।।
पंचतंत्र जिसके घर में माता न हो और Pत्नी अप्रियभाषिणी हो उसे वनवासी हो जाना चाहिये, क्योंकि उसके लिये वन और घर बराबर है।
तो महाराज! घर पर झगड़े के बिना एक दिन भी नहीं निकलता था