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यही सानो काम !
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जैसी अपूर्व वस्तु बिना विनय के अभाव में कैसे प्राप्त की जा सकती है ? अर्थात् विनय के अभाव में आत्मा का उद्धार नहीं हो सकता। आपके हृदय में यह जानने की जिज्ञासा होगी कि यह कैसे ? आत्मा के उद्धार का विनय से क्या सम्बन्ध है ?
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अभाव में आत्मा को कभी कारण बुध्दि परिष्कृत होती
पर वास्तव में यह सत्य है कि विनय के मुक्ति हासिल नहीं होती। वह इसलिए कि विनय के है और जिसकी बुध्दि परिष्कृत होती है तथा विकसित होती है वह व्यक्ति अपने गुरु अथवा आचार्य से नम्रतापूर्वक सम्यक्ज्ञान प्राप्त कर सकता है। सम्यक्ज्ञान प्राप्त होनेपर सम्यक् चारित्र का मनुष्य पालन करता है और उसके कारण नवीन कर्मों का बंध होना रुक जाता है। जब क्वीन कर्मों का बंध होना रुक जाता है तो दृढ़ तपोबल हासिल होता है और उससे पूर्व कर्मों की निर्जरा होती चली जाती है। पूर्व कर्मों का क्षय होने पर आत्मा कर्म-रहित अर्थात् अयोगी दशा को प्राप्त होती है। उस समय मन, वचन और शरीर के समस्त व्यापार अवरूध्द हो जाते हैं। तथा ऐसी स्थिति प्राप्त होने पर भव-परम्परा नष्ट हो जाती है। आत्मा को पुन: पुन: जन्म-मरण के चक्र में नहीं फंसा पड़ता।
मेरे कहने का अभिप्राय यही है कि विनय ही एक ऐसा मार्ग है जो हमें शनै: शनै: मुक्तिरूपी मंजिल तक पहुँचा देता है। यह ऐसा महान् गुण है जिसके कारण मनुष्य झुकता है किन्तु वह संसार को दृष्टि में ऊँचा उठ जाता है। अतः मुक्ति के इच्छुक प्राणी को सर्वप्रथम विनय गुण को अपनाना चाहिये। विनय होने पर ही वह सम्यक्ज्ञान हासिल कर सकेगा तथा सम्यक् चारित्र का पालन करके आत्मा को संसार मुक्त बना सकेगा । सम्यक्ज्ञक्त और सम्यक्वारित्र के अभाव में मनुष्य चाहे साधु बन जाए, कितना भी जप तप क्यों न करे, पंचाग्नि में शरीर को तपा डाले पर मोक्ष को हासिल नहीं कर सकता। यही बात पूज्यपाद श्री अमीऋषि जी महाराज ने अपने एक पद्य में बताई है :
सिर पैर लौ मुंडावे केद्रा बारंबार,
केते पंचकेशी -ख जटा ही बढ़ावे हैं ।। केते व्है दिगंबर वसन तजि : फिरे केले,
नाना रंग भेख केंसे भसमी रमावे है। केते जोग आसन समाधि ही बैठे केते,
के
पंचा िचौरासी माँहि देह को तपावे है। अमीरख करी क्यों ना देने कष्ट नाना भांति । जीव दया ज्ञान विना मोक्ष नहीं पावे है।
अर्थात् कितने ही व्यक्ति बारंगर केश-लुञ्चन करते हैं, कितने ही नाखून और जटा बढ़ा लेते हैं, कितने ही व्यक्ति वस्त्र त्याग कर दिगम्बर बन जाते हैं तथा कितने ही नाना रंग के वस्त्र पहन कर शरीरों में भस्म रमा लेते हैं। अनेक