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यादृशी भावना यस्य
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यादृशी भावना यस्य
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धर्मप्रेमी बन्धुओ, माताओं एवं बहनों!
श्री रायप्रसेनी सूत्र में सूर्याभ देवता अमलकप्पा नगर में विराजते हुए भगवान महावीर प्रभु की तरफ अवधिज्ञान से देखते हुए उनके दर्शन कर करना, शुभ भावना लाना पुण्योपार्जन का मार्ग है।
रहे हैं। दर्शन
भाव का महत्त्व
माना जाता है। आप व्यवसायी कमाने की धुन में लग जाते कीमत नहीं होती, किन्तु भाद
भाव का महत्त्व संसार में बहुत अधिक हैं। किसी भी चीज का भाव आते ही दो-पैसे हैं। भाव आए बिना असली और ऊँचे माला की भी आजाए तो रद्दी भी मँहगे दामों पर निकल जाता है।
आप अच्छी तरह जानते होंगे पत्ती का भाद कम रहता है अधिक रहता है यही न? मैं काली पत्ती, लाल पत्ती जैसी कब चलती है ? भगर आ जाने पर ।
मैं प्रायः व्यापारी लोगों से सुनता कपास का व्यापार करने वाले कहते हैं- भाव आ जाने पर चाहे लाल पत्ती हो या काली पत्ती, कोई नहीं देखता । कि काली पत्नी क्या, और लाल पत्ती क्या ? काली और लाल पत्ती जिसमें कोई दोष नहीं होता, भाव जानता नहीं केवल आप लोगों से सुनता हूँ। तो
सुना है, अहमदनगर में एक बड़ी विशाने की दुकान है खूबचन्द्र मुलतानचन्द्र की। उनकी दुकान में एक बार एक थैला ऐसा आ गया, जिसमें सड़ी सुपारियाँ थी। ध्यान में रखिये ! एक थैला सड़ी सुपारियों का माल के साथ आ गया। दुकान के मालिकों ने उसे देखा और सोचा - यह सड़ी है, नहीं चलेगी। उसे एक ओर रख दिया।
किन्तु कुछ दिनों बाद सुपारी का भाव आ गया और वह सड़ी सुपारी भी अच्छे भाव में चली गई। इससे मालृाग होता है कि भाव का बड़ा महत्त्व है। भाव ही नुकसान देता है और भाव ही नफा बराता है।
भाव और आत्मा
जिस प्रकार बाह्यपदार्थों के नफे और नुकसान का संबंध भाव से है, उसी प्रकार आत्मा के नफे और नुकसान का संबंध भी भाव से ही है। भाव आने