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आनन्द प्रवचन भाग १
बिना प्रयत्न और पुरुषार्थ के भाग्य फलता-फूलता नहीं है।
उद्योग: पुरुष-लक्षणम्
इसलिये
बन्धुओ ! भाग्य के भरोसे न बैठकर आपको सतत प्रयत्न करना है। बिना विलम्ब किये हमारी इस दुकान से प्रतिदिन कुछ न कुछ माल पल्ले बाँधना है। जितना भी अधिक आप इसे ग्रहण करेंगे, आपकी आत्मा को सुख व शांति का अनुभव होगा । निरन्तर प्रयत्न करने पर असंभव भी संभव बन जाता है। आवश्यकता सिर्फ यही है कि मनुष्य मुसीबतों से हार न माने तथा प्रत्येक बाधाओं से जूझता रहे। किसी कवि ने भी मानव को प्रेरणा दी है :
बात की बात में विश्वास बदल जाता है, रात ही रात में इतिहास बदल जाता है।
तू मुसीबतों से न घबरा अरे इन्सान !
धरा की क्या कहें आकाश बदल 1 जाता है।
यह सब कैसे हो सकता है? मनुष्य के निरन्तर श्रम व पुरुषार्थ से।
सच्ची लगन और दृढ आस्था से आपको भी साहसपूर्वक आगे बढ़ना है। आठ के अंक से निकलकर नौ के अंक में प्रवेश करना है तथा किस दुकान से माल लेने में आपको हानि होती है और किस दुबान से माल क्रय करने में लाभ हासिल होता है इसका लेखा-जोखा करते हुए स्वयं ही निर्णय करना है कि कोनसी वस्तुएँ अर्थात् कौनसे साधन आपके साधना पथ को प्रशस्त बना सकते हैं? अगर आपका निर्णय हमारे पक्ष में होता है, हमारी दुकान का माल आपको अपनी आत्मा के लिये हितकर मालूम होता है तो निश्चय है। आपकी आत्मा एक दिन परमात्मा-पद को प्राप्त करने में समर्थ हो सकती है। तथा अक्षय और अनन्त सुख की अधिकारिणी बन सकती है।
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