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आनन्द प्रवचन भाग १
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हैं पर अशुभ कर्मों के उदय होने पर उनमें से एक नो काम नहीं आता !
ज्येतिषी लोग चन्द्र-बल पहले देखते हैं। सूर्य, बृहस्पति, शुक्र, मंगल, बुध आदि तो हैं ही, पर चन्द्र-बल का सबसे अधिक महत्व माना जाता है। संस्कृत में चन्द्र को 'विधु' कहते हैं। पद्य में बताए गये के अनुसार 'विधुरपि' यानी चन्द्र भी कर्मों के कारण राहु से ग्रसित हो जाना है। खग्रास चन्द्रमा को ढक लेता है, छिपा देता है। सारे संसार को शांति प्रदान करने वाला हजार किरणों वाला और ज्योतिषी में अनन्य महत्व रखने वाला चन्द्र भी कर्मोदय के कारण ग्रसित होता है। इससे यह साबित हो जाता है कि ललाट पर लिखे गये लेख को मिटाने में कोई भी समर्थ नहीं होता।
एक बात और ध्यान में रखने की है कि साहूकार किसी को ऋण देता है। किन्तु उस ऋण को जब कर्जदार लौखता नहीं है तो वह पत्र भेजता है, आदमी भेजता है, कई बार तकाजा करवाता है। इसके बाद भी जब ऋणी रुपये नहीं लौटाता तब फिर नालिश का नंबर आता है और उस पर भी रुपये न मिले तो? कुड़की करवानी पड़ती है। प्राय: कुडवत कब लाई जाती है? जबकि विवाह शादी का कोई खास अवसर हो या ऐसा ही अन्य प्रसंग हो जब लोक काफी संख्या में इकट्ठे हों।
सैकड़ों और हजारों की कुड़की उसी पर की जाती है जबकि किसी प्रकार भी उससे वसूल हो सकना संभव होता है। अर्थात् उसकी स्थिति अच्छी हो। किसी नंगे भूखे को तो ऋण देने का भी सवाल नहीं होता और उस पर कुड़की करवाने से फिर लाभ ही क्या हो सकता है। तो सामने वाले की स्थिति अच्छी होने पर ही जिस प्रकार उस पर कुड़की की जाती है, उसी प्रकार चन्द्रमा को भी पंचमी, सप्तमी या अष्टमी को ग्रहण नहीं लगता। ग्रहण लगता है, जब पूर्ण हो जाता है, उसमें पूरी शक्ति आ जाती है। कर्म भी एक प्रकार का साहूकार है जो पूरी तरह समर्थ होने पर अपना कर्ज वसूल करू के लिए आता है। बड़े-बड़े अवतारी पुरुषों पर भी आपत्ति ऐसे ही समय में आती है। हिन्दी कवि कहते हैं
रामचंद्र थे बल भर
अयोध्या राज जब पाया, कर्म ने धायके घेरा ।
फिरे वन वन में दुख भारी यह है। कर्मों की गति न्यारी । किसी से नाहिं टरे टारी,
मर्यादापुरुषोत्तम और बलभद्र के अवतार राम को जिस दिन राज्यतिलक होने वाला था, उसी दिन वनवास को जाना पड़ा। कर्मों की कृपा के कारण।
ऋषभदेव भगवान तीर्थंकर थे। किन्तु ] बारह महीने तक उन्हें भी अन्न और पानी नहीं मिल सका। जिनकी सेवा में देवता रहते हों, उन्हें भी महीनों अन्न-जल न मिले यह कितने आश्चर्य की बात है ? पर कर्मों के आगे आश्चर्य हो तो क्या