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. लेखा -जोखा
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वस्तुत: जिस प्रकार प्रतिमा मूर्तिकार के द्वारा गढ़ी जाती है, ठीक उसी प्रकार मानव अपने गुरु के द्वारा गढ़ा जाता है। और तभी वह अपनी आत्मा को शुद्ध बनाता हुआ एक दिन परमात्म-पद को भी प्राप्त कर जगतपूज्य बन सकता है। कहा भी है :---
गुरु कारीगर सारिखा टाँची वान विचार।
पत्थर से प्रतिमा करे, पूजा लहै अपार॥
बन्धुओ, इसीलिये मैं बार-बार आपको चेतावनी देता हैं, आग्रह करता हूँ कि इस पारमार्थिक दुकान से आप बिना कुछ मूल्य दिये अमूल्य वस्तुएँ अधिक से अधिक मात्रा में लें। आपकी दुकानों की वस्तुएँ तो जीर्ण होने वाली हैं, सड़ने वाली हैं और नष्ट हो जाने वाली हैं। जितु हमारी दुकान में जो पारमार्थिक वस्तुएँ हैं, वे कभी खराब होने वाली नहीं हैं, नष्ट होने वाली या विकृत होने वाली नहीं हैं। अगर आप ये वस्तुएँ अपने पल्ले में बाँध लेंगे तो आपका निश्चय ही कल्याण होगा। भाम्यहीन को ना मिले
वैसे यह सही है कि भाग्य वेत बिना कोई भी व्यक्ति, चाहे वस्तु बिना मोल दिये ही मिल रही हो, प्राप्त नहीं कर सक्त्ता -
संचिता सारखे पडे त्याच्या हता। फारसे मागता तरी नये ॥३॥
अर्थात् जितना भाग्य में होगा उसके अनुसार ही माल पल्ले पड़ेगा। माँगने से भी अधिक मिलना संभव नहीं है।
- आप सुनते हैं और पढ़ते भी है कि तीर्थकर महाराज वर्षीदान करते हैं। एक दिन में एक करोड़ व आठ लाल सोनयों का दान किया जाता है। जिन तीर्थकरों की सेवा में देव रहते हों उन्हें क्या अभाव ? अनन्त पुण्यवानी के अधिकारी तीर्थकर बिना भेद-भाव के दान करते हैं किन्तु जिनके पल्ले में पुण्य नहीं है, वे दान लेकर निकलते भी हैं तो वह उसके पास नहीं रहता। उनके कर्म ही उस लाभ से उन्हें वंचित कर देते हैं। मराठी में कहावत है--
देव देतो आणि कर्म नेतो। -- देवता देता है, पर कर्म वापिस ले जाता है।
किन्तु इससे मानव को निराश नहीं होना चाहिये वस् सतत् पुरुषार्थरत बने रहना चाहिये। पुरुषार्थी पुरुष धीरे-धीरे अपने भाग्य को भी बदल लेता है। दुसरे शब्दों में -
एवं पुरुषकारेण किंवा दैवं न सिद्धयति ।