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गुण-दृष्टि और दोष-दृष्टि
हंस श्वेत रंग का होता है और अगला भी। किन्तु दोनों की वृत्तियों में महान अंतर होता है। हंस केवल मोती ग्रहण करता है। उसके समक्ष भले ही मोती और कंकर मिला कर रख दिये जाय, पर वह केवल मोती ही उठायेगा। दूध में पानी मिलाकर रख देने पर भी वह सिर्फ बच को ही ग्रहण करेगा।
आनन्द प्रवचन भाग १
शंकालु व्यक्ति कहेंगे, ऐसा कैसे हो सकता है? पर वास्तव में ऐसा ही होता है। हंस की चोंच में ऐसी ही शक्ति होती है, ऐसा गुण होता है कि वह दूध अलग और पानी अलग कर देता है।
इसके अलावा आपने देखा होगा कि दूध देने वाली गायों के स्तनों के पास चीचड़े होते हैं। वे स्तन के पास रहत्तर भी खून चूसते हैं दूध नहीं। जोंक भी शरीर पर चिपकी रहकर खराब खून चूमती है। यह सब क्यों ? इसलिये कि इन प्राणियों की वृत्ति ही ऐसी होती है।
इन उदाहरणों को देने का अभिप्राय यही है कि अगर आपके बालक अशिक्षित रहेंगे और असंस्कारी भी रह जाएँगे तो उनकी वृत्तियों परिष्कृत नहीं हो सकेंगी तथा उनकी दृष्टि, गुण-दृष्टि नहीं बन पाएगी। परिणाम यह होगा कि विद्वत्जनों के बीच में उनकी उपस्थिति व्यर्थ साबित होगी तथा वे किसी प्रकार का लाभ नहीं उठा पाएँगे। साथ ही अशोभनीय दिखाई देंगे जिस प्रकार बगुले हँसों के मध्य में दिखाई देते हैं।
इसलिये बंधुओ! अपने बालकों को प्रारम्भ से ही संस्कारित करने का प्रयत्न करो। बच्चों को - 'बहू कैसी लानी ? और दूल्हा कैसा चाहिये ?' यह कहने के बजाय सिखाओ कि पिता आने पर खड़े हो जायें, माता का आदर करें, प्रातः उठते ही ईश-स्मरण करें, झूठ न बोलें, चारी न करें आदि-आदि चरित्र-निर्माण की बाते उन्हें सिखाओ! तभी वे बड़े होने पर आपका, आपके कुल का तथा समाज का गौरव बढ़ाएँगे और धर्म की रक्षा करेंगे। अन्यथा क्या होगा? आपकी संतान बड़ी होकर आपको दोष देगी, गालियाँ देगी तथा भला-बुरा कहेगी कि हमें अशिक्षित और असंस्कारी रख दिया।
मां से मिलना है।
किसी शहर में एक माता और पुत्र रहते थे। पुत्र छोटा था, पिता की मृत्यु हो चुकी थी। अतः बच्चे के पालन-पोषण का भार माता पर ही आ गया। माता संस्कारहीन थी तथा उसमें सद्गुणों का प्रभाव था। बच्चे के भविष्य की चिन्ता उसे नहीं थी।
शैशवावस्था में एक दिन वह किसी लड़के की गेंद चुरा लाया। माँ ने उसकी इस छोटी-सी चीज पर नाराजी प्रकट नहीं की उलटे प्रसन्नता जाहिर की। बच्चे का उत्साह बढ़ गया और वह प्रतिदिन या जब भी मौका मिला, कुछ न