Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भूमिका
नियुक्ति में उन्होंने इतिहास के अनेक तथ्यों की सुरक्षा की है।
ऋषभ के बाद महावीर के जीवन के विविध प्रसंग, साधनाकाल के कष्ट आदि का स्थान एवं व्यक्ति के नाम सहित विस्तृत विवेचन है। महावीर के जीवन को स्वप्न, गर्भापहार आदि १३ द्वारों से निरूपित किया है। कैवल्य-प्राप्ति के बाद भगवान् महावीर महासेन वन उद्यान में पहुंचे, वहां दूसरा समवसरण हुआ। उस समय सोमिल ब्राह्मण की यज्ञवाटिका में यज्ञ का आयोजन हो रहा था। यज्ञवाट के उत्तर में देवताओं द्वारा भगवान् की स्तुति की जा रही थी। दिव्य ध्वनि से चारों दिशाएं गूंज रही थीं। उसी यज्ञवाटिका में धुरंधर विद्वान् इन्द्रभूति गौतम आदि ११ ब्राह्मण विपुल शिष्य-संपदा के साथ आए हुए थे। इस प्रसंग में नियुक्तिकार ने गणधरों का महावीर के पास आना, उनकी शंकाओं का निराकरण होने पर महावीर के चरणों में शिष्य-मंडली के साथ प्रव्रजित होने का सुंदर वर्णन किया है। गणधरों की शंकाएं क्रमशः इस प्रकार थीं-१. जीव का अस्तित्व २. कर्म का अस्तित्व ३. जीव और शरीर का अभेद ४. भूतों का अस्तित्व ५. इहभव-परभव सादृश्य ६. बंध-मोक्ष ७. देवों का अस्तित्व ८. नरक का अस्तित्व ९. पुण्य-पाप १०. परलोक की सत्ता ११. निर्वाण का अस्तित्व । ये सारी शंकाएं गणधरों के मनोगत थीं। कोई उन्हें जान नहीं पाया था। महावीर ने उन शंकाओं को प्रकाशित कर, उनके ही ग्रंथों से उनका समाधान प्रस्तुत किया। गणधरों एवं उनकी शंकाओं का सबसे प्राचीन उल्लेख आवश्यक नियुक्ति में मिलता है। नियुक्तिकार ने वेदपदों के आधार पर गणधरों के माध्यम से शंकाओं को उभारा और जैन दर्शन के मुख्य सिद्धान्तों को प्रतिष्ठित करने का प्रयत्न किया। यहां एक प्रश्न यह उपस्थित होता है कि नियुक्तिकार ने महावीर के मुख से केवल संशय प्रस्तुत करवाए हैं, उनका समाधान क्यों नहीं दिया? इस प्रश्न के संदर्भ में यह बात संभव है कि प्रत्येक गणधर की शंका का समाधान प्रस्तुत करने वाली गाथा भाष्य में मिल गयी हो अथवा नियुक्तिकार ने इस प्रसंग को अछूता ही छोड़ दिया हो।
निर्गम द्वार की चर्चा के प्रसंग में ही सामायिक का निर्गम कब हुआ, इसका उल्लेख मिलता है। सामायिक के अर्थकर्ता तीर्थंकर तथा सूत्रकर्ता गणधर हैं। इसके पश्चात् निर्गम के काल आदि अन्य निक्षेपों का वर्णन है। निर्गम के पश्चात् उपोद्घात नियुक्ति के क्षेत्र, काल, पुरुष आदि द्वारों का वर्णन मिलता है। नय के प्रसंग में आर्य वज्र के जीवन-प्रसंगों का विस्तृत उल्लेख है तथा आर्य रक्षित के जीवन प्रसंग के साथ उन्होंने चारों अनुयोगों का पृथक्करण किया, इसका भी वर्णन प्राप्त है। निह्नवों का सम्पूर्ण वर्णन ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
इसके पश्चात् सामायिक, सामायिक के भेद, उसके अधिकारी की योग्यता, सामायिक कहां आदि विविध द्वारों का समाधान दिया गया है। अंतिम निरुक्ति द्वार में सामायिक के निरुक्तों का उल्लेख कर सर्वविरति के आठ निरुक्त एवं उनसे सम्बन्धित आठ ऐतिहासिक पुरुषों के जीवन-प्रसंगों का संकेत दिया गया है जिन्होंने समता का विशेष अभ्यास किया था।
सामायिक का प्रारम्भ नमस्कार मंत्र (परमेष्ठी नमस्कार) से होता है अतः नियुक्तिकार ने अर्हत्, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इनका विवेचन करते हुए नमस्कार की उत्पत्ति, पद, पदार्थ, प्ररूपणा, प्रसिद्धि, क्रम, प्रयोजन, फल आदि ११ द्वारों का निरूपण किया है। इसमें सिद्धों का स्वरूप-वर्णन बहुत विस्तृत एवं महत्त्वपूर्ण हुआ है। सिद्ध से संबंधित नियुक्ति की गाथाएं प्रज्ञापना एवं औपपातिक सूत्र में भी मिलती हैं। बुद्धिसिद्ध के प्रसंग में औत्पत्तिकी आदि चार बुद्धियों का स्वरूप एवं उनके दृष्टान्तों का संकेत
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