Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
परिचय
समवायांग में इस आगम के दस अध्ययन और सात वर्ग कहे हैं। नन्दीसूत्र में आठ वर्गों का उल्लेख है किन्तु दश अध्ययनों का उल्लेख नहीं है। आचार्य अभयदेव ने समवायांगवृत्ति में दोनों आगमों के कथन में सामंजस्य बिठाने का प्रयास करते हुए लिखा है कि प्रथम वर्ग में दश अध्ययन हैं। इस दृष्टि से समवायांग सूत्र में दश अध्ययन
और अन्य वर्गों की दृष्टि से सात वर्ग कहे हैं। नन्दीसूत्र में अध्ययनों का उल्लेख नहीं किया है, केवल आठ वर्ग बतलाये हैं। परन्तु इस सामंजस्य का अन्त तक निर्वाह किस प्रकार हो सकता है? क्योंकि समवायांग में अन्तकृद्दशा के शिक्षाकाल (उद्देशनकाल) दश कहे गये हैं, जबकि नन्दीसूत्र में उनकी संख्या आठ बताई गई है। समवायांग की वृत्ति में आचार्य अभयदेव ने लिखा है कि उद्देशनकालों के अन्तर का अभिप्राय हमें ज्ञात नहीं है।
आचार्य जिनदासगणी महत्तर ने नंदीचूर्णि में" और आचार्य हरिभद्र ने नंदिवृत्ति में लिखा है कि प्रथम वर्ग के दश अध्ययन होने से प्रस्तुत आगम का नाम अंतगडदसाओ है। चूर्णि में दशा का अर्थ अवस्था भी किया है। समवायांग में दश अध्ययनों का निर्देश है किन्तु उनके नाम का निर्देश नहीं है। जैसे नमि, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सुदर्शन, जमालि, भगाली, किंकष, चिल्वक्क और फाल अंवडपत्र। ८
तत्त्वार्थसत्र के राजवार्तिक में एवं अंगपण्णत्ती में कुछ पाठभेद के साथ दश नाम प्राप्त होते हैं। जैसे नमि, मातंग, सोमिल, रामगप्त, सुदर्शन, यमलोक, वलीक, कंबल, पाल और अंबष्ठपुत्र। उसमें लिखा है कि प्रस्तुत आगम में प्रत्येक तीर्थंकरों के समय में होने वाले दश-दश अन्तकृत केवलियों का वर्णन है।१०
जयधवला में भी इस बात का समर्थन किया है।११ नंदीसूत्र में न तो दश अध्ययनों का उल्लेख है और न उनके नामों का ही निर्देश है। समवायांग और तत्त्वार्थवार्तिक में जिन नामों का निर्देश हुआ है वह वर्तमान अन्तकृद्दशांग
१. दस अज्झयणा सत्त वग्गा।-समवायांग प्रकीर्णक, समवाय सूत्र ९६. २. अट्ठ वग्गा-नंदीसूत्र ८८.
दस अज्झयण त्ति प्रथमवर्गापेक्षयैव घटन्ते, नन्द्यां तथैव व्याख्यातत्वात् यच्चेह पठ्यते 'सत्त वग्ग' त्ति तत् प्रथमवर्गादन्यवर्गापेक्षया
यतोऽप्यष्ट वर्गाः, नन्द्यामपि तथा पठितत्वात् -समवायांगवृत्ति पत्र ११२. ४. तत्तो भणितं-अट्ठ उद्देसणकाला इत्यादि, इह च दश उद्देशनकाला अधीयन्ते इति नास्याभिप्रायमवगच्छामः।
-समवायांगवृत्ति, पत्र ११२. पढमवग्गे दश अज्झयण त्ति तस्सक्खतो अंतगडदस त्ति-नंदिसूत्र चूर्णिसहित पृ. ६८. प्रथमवर्गे दशाध्ययनानि इति तत्संख्यया अन्तकृद्दशा इति -नंदिसत्रवृत्तिसहित, प. ८३.
दसत्ति-अवस्था-नंदीसूत्र, चूर्णिसहित पृ. ६८. ८. ठाणं, १०/११३ ९. तत्त्वार्थवार्तिक १/२०, पृ. ७३। १०. (क) ........ इत्येते दश वर्धमानतीर्थकरतीर्थे, एवमृषभादीनां त्रयोविंशतेस्तीर्थेष्वन्येऽन्ये च दश दशानगारा दश दश दारुणानुपसर्गान्निर्जित्य कृत्स्नकर्मक्षयादन्तकृतः दश अस्यां वर्ण्यन्ते इति अन्तकृद्दशा।
-तत्त्वार्थवार्तिक १/२०, पृ. ७३. (ख) अंगपण्णत्ती, ५१. ११. अंतयडदसा णाम अंगं चउव्विहोवसग्गे दारुणे सहिऊण पाडिहेरं लक्ष्ण णिव्वाणं गदे सुदंसणादि दस-दस साहू तित्थं पडिवण्णेदि।
-कसायपाहुड, भा. १, पृ. १३०. [१५]