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संयम द्वारा संवृत्त होता है (५) । ५७. आरम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को जानकर और त्यागकर 5 आत्मा सम्पूर्ण संवर द्वारा संवृत्त होता है ( ६ ) । ५८. आरम्भ और परिग्रह- इन दो स्थानों को जानकर 卐 और त्यागकर आत्मा विशुद्ध आभिनिबोधिक ज्ञान को प्राप्त करता है (७) । ५९. आरम्भ और परिग्रहइन दो स्थानों को जानकर और त्यागकर आत्मा विशुद्ध श्रुतज्ञान को प्राप्त करता है (८) । ६०. आरम्भ 5 और परिग्रह- इन दो स्थानों को जानकर और त्यागकर विशुद्ध अवधिज्ञान को प्राप्त करता है (९) । ६१. आरम्भ और परिग्रह- इन दो स्थानों को जानकर और त्यागकर आत्मा विशुद्ध मनःपर्यवज्ञान को प्राप्त करता है (१०) । ६२. आरम्भ और परिग्रह- इन दो स्थानों को जानकर और त्यागकर ही आत्मा 5 विशुद्ध केवलज्ञान को प्राप्त करता है (११) ।
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52. By knowing and abandoning two sthaans a soul is able to listen to the Sermon of the Omniscient (1), they are—arambh (ill-intent; activity 5 that causes harm to beings) and parigraha (tendency to possess). In the same way by knowing and abandoning arambh and parigraha a soul able to-53. experience pious enlightenment (right knowledge) (2). 54. tonsure his head and renounce his household to become a homeless ascetic (anagar) (3). 55. observe complete celibacy ( 4 ). 56. embrace 5 complete ascetic-discipline (in the form of five great vows) (5). 卐 57. accomplish complete samvar (stopping of the inflow of karmas) (6). 58. acquire pure abhinibodhik jnana or mati-jnana (sensory knowledge or to know the apparent form of things appearing before the soul by means of five sense organs and the mind) (7) 59. acquire pure shrut-jnana 5 (scriptural knowledge) (8). 60. acquire pure avadhi-jnana (extrasensory perception of the physical dimension; something akin to clairvoyance) (9). 61. acquire pure manahparyav jnana (extrasensory perception and knowledge of thought process and thought-forms of other beings, something akin to telepathy) (10). 62. acquire pure keval-jnana F (omniscience) (11).
द्वितीय स्थान
श्रवण- ग्रहण - अधिगमपथ SHRAVAN GRAHAN ADHIGAM-PAD
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(SEGMENT OF ATTAINMENT THROUGH LISTENING AND ACCEPTING) ६३. दोहिं ठाणेहिं आया केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए, तं जहा- सोच्चच्चेव, फ्र अभिसमेच्चच्चेव । ६४. दोहिं ठाणेहिं आया केवलं बोधिं बुज्झेज्जा, तं जहा- सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव । ६५. दोहिं ठाणेहिं आया केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वज्जा, फ तं जहा- सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव । ६६. दोहिं ठाणेहिं आया केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा, तं जहा- सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव । ६७. दोहिं ठाणेहिं आया केवलं संजमेणं संजमेज्जा, तं जहा- सोच्चच्चेव, अभिसमेच्चच्चेव । ६८. दोहिं ठाणेहिं आया केवलं संवरेणं संवरेज्जा,
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Second Sthaan
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