Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 582
________________ Bhhhhhhhhhhhhhhhhhhh5555555555555555E राशि में चार का भाग देने पर दो शेष रहे, वह द्वापरयुग्म। जैसे-६, १०, १४, १८ अंक; तथा । 卐 (४) कल्योज-जिस राशि में चार का भाग देने पर एक शेष रहे, वह कल्योज। जैसे-५, ९, १३, १७, २१ अंक। 364. Yugma (specific sets of numbers) are of four kinds- y (1) Krityugma-a number when divided by four has four as quotient. For example-8, 12, 16, 20 etc. (2) Tryoj-a number when divided by four has three as quotient. For example-7, 11, 15, 19 etc. (3) Dvapar-a number when divided by four has two as quotient. For example-6, 10, 14, 18 etc. (4) Kalyoj-a number when divided by four has one as I ॐ quotient. For example-5, 9, 13, 17, 21 etc. ३६५. णेरइयाणं चत्तारि जुम्मा पण्णत्ता, तं जहा-कडजुम्मे, तेओए, दावरजुम्मे, कलिओए। ___३६५. नारक जीव चारों प्रकार के युग्म वाले होते हैं-(१) कृतयुग्म, (२) त्र्योज, (३) द्वापरयुग्म, और (४) कल्योज। 4i 365. Naarak jivas (infernal beings) conform to four kinds of yugmas 卐 (specific sets of numbers)—(1) Krityugma, (2) Tryoj, (3) Dvapar, and (4) Kalyoj. ३६६. एवं असुरकुमाराणं जाव थणियकुमाराणं। एवं-पुढविकाइयाणं आउ-तेउ-वाउवणस्सतिकाइयाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिदियाणं पंचिंदियतिरिक्ख-जोणियाणं मणुस्साणं ॐ वाणमंतरजोइसियाणं वेमाणियाणं-सव्वेसिं जहा णेरइयाणं। ३६६. इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक, तथा पृथ्विी, अप, तेज, वायु, ॐ वनस्पतिकायिकों के, द्वीन्द्रियों के, त्रीन्द्रियों के, चतुरिन्द्रियों के, पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों के, मनुष्यों के, वाणव्यन्तरों के, ज्योतिष्कों के और वैमानिकों के सभी के नारकियों के समान चारों युग्म कहे गये हैं। 5 366. In the same way all the beings from Asur Kumars to Stanit Kumars, earth-water-fire-air-plant bodied beings, two-three-four sensed beings, five sensed animals, human beings, interstitial gods, stellar gods and celestial vehicle dwelling gods are said to conform to four yugmas (specific sets of numbers like infernal beings. विवेचन-संख्याएँ दो प्रकार की होती हैं-सम और विषम। सम संख्या को युग्म और विषम संख्या को ओज कहा जाता है। सभी दण्डकों में चारों युग्म राशियों के जीव पाये जाने का कारण यह है कि जन्म और मरण की अपेक्षा इनकी राशि में कमी या अधिकता होती रहती है, इसलिए किसी समय 5 । विवक्षित राशि कृतयुग्म पाई जाती है, तो किसी समय त्र्योज आदि राशि पाई जाती है। चार युग की प्रतीकात्मक भाषा पर चिन्तन करते हुए आचार्य श्री आत्माराम जी म. ने लिखा है कि वैदिक साहित्य में चार युग बताये हैं-(१) कृतयुग (सतयुग), (२) त्रेता, (३) द्वापर, और (४) कलियुग। तथा इनके साथ धर्म के चार चरण की कल्पना जोड़ी गई है-सत्य, अहिंसा, दया और 白听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 स्थानांगसूत्र (१) (496) Sthaananga Sutra (1) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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