Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 619
________________ ) ))) ))) ) )) ))))))))))5555)) 4 sincerely observing vows and austerities due to weak bondage of karmas acquired during past births. The other alternatives mentioned are variations of these two. श्रमणोपासक प्रकार-पद SHRAMANOPASAK PRAKAR-PAD (SEGMENT OF TYPES OF SHRAMANOPASAKS) __४३०. चत्तारि समणोवासगा पण्णत्ता, तं जहा-अम्मापिइसमाणे, भाइसमाणे, मित्तसमाणे, सवत्तिसमाणे। ४३०. श्रमणोपासक चार प्रकार के होते हैं-(१) माता-पिता के समान, (२) भाई के समान, (३) मित्र के समान, (४) सपत्नी (सौत) के समान। 430. Shramanopasaks are of four kinds—(1) like parents, (2) like a 41 $1 brother, (3) like a friend, and (4) like a co-wife. विवेचन-श्रमण-निर्ग्रन्थों की उपासना-आराधना करने वाले गृहस्थ श्रमणोपासक के गुण और है प्रकृति के अनुसार चार भेद इस प्रकार होते हैं जिन श्रमणोपासकों में बिना किसी भेदभाव के, परमार्थ 卐 बुद्धि से श्रमणों के प्रति अत्यन्त स्नेह, वात्सल्य और श्रद्धा का भाव रहता है उनकी तुलना माता-पिता + से की गई है। वे तात्त्विक-विचारणा में और जीवन निर्वाह में, दोनों ही अवसरों पर प्रगाढ़ वात्सल्य म और भक्तिभाव का परिचय देते हैं। ऊ जिन श्रमणोपासकों में तत्त्व विचार के समय श्रमणों के प्रति वात्सल्य और प्रसंग आने पर उग्रभाव दोनों ही समय आने पर होते हैं, उनकी तुलना भाई से की गई है। जिन श्रमणोपासकों में श्रमणों के प्रति कारणवश प्रीति और कारण विशेष से अप्रीति दोनों पाई । ॐ जाती हैं, उनकी तुलना मित्र से की गई है। ___जो केवल नाम से श्रमणोपासक कहलाते हैं, किन्तु जिनमें श्रमणों के प्रति वात्सल्य या भक्तिभाव नहीं होता, प्रत्युत जो ईर्ष्या-द्वेषवश छिद्रान्वेषण ही करते रहते हैं, उनकी तुलना सपत्नी (सौत) से की फ़ गई है। Elaboration-There are four qualitative categories of shramanopasaks or the householder devotees of Shraman nirgranths (Jain ascetics). The shramanopasaks having impartial and unselfish fondness, affection and respect for ascetics are compared with parents. They display deep fondness and devotion both in religious contemplation % and worldly activities. 卐55555555555;) चतुर्थ स्थान (533) Fourth Sthaan Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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