Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 643
________________ 四步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步牙牙牙牙牙牙牙 विवेचन-इन दोनों सूत्रों में 'तम' और 'ज्योति' आदि शब्द प्रतीकात्मक है। 'तम' का अर्थ अज्ञान या ॥ अप्रशस्त विचार एवं ज्योति का अर्थ ज्ञान व शुभ विचार है। तमोबल का अर्थ है-युद्ध, हिंसा, चोरी आदि असद् आचरण ही जिसका बल हो। ज्योतिर्बल का अर्थ सदाचारमय शान्ति, प्रेम आदि के म व्यवहार से है। Elaboration-In these two aphorisms the words 'tam' and jyoti' are metonymic. Tam or darkness signifies ignorance or evil thoughts and jyoti or light signifies enlightenment or pious thoughts. Tamobal means one whose strength lies in evil conduct, such as war, violence, theft etc. and jyotirbal means one whose strength lies in good conduct, such as peace, love etc. ४६२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-तमे णाममेगे तमबलपलज्जणे, तमे णाममेगे जोतिबलपलज्जणे [ जोती णाममेगे तमबलपलज्जणे, जोती णाममेगे जोतिबलपलज्जणे ]) ४६२. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई पुरुष तम (अज्ञान) और तमोबल में प्रसन्नता अनुभव करता है। (२) कोई तम, किन्तु ज्योतिर्बल (ज्ञान व शुभ विचार) में प्रसन्न होता है। (३) कोई : ॐ ज्योति, किन्तु तमोबल में, और (४) कोई ज्योति और ज्योतिर्बल में प्रसन्नता का अनुभव करता है। 462. Purush (men) are of four kinds-(1) some man experiences joy in tam and tamobal, (2) some man experiences joy in tam and jyotirbal, (3) some man experiences joy in jyoti and tamobal, and (4) some man experiences joy in jyoti and jyotirbal. परिज्ञात-अपरिज्ञात-पद PARIJNAT-APARIJNAT-PAD (SEGMENT OF KNOWLEDGEABLE AND UNKNOWLEDGEABLE) ४६३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-परिणातकम्मे णाममेगे णो परिण्णातसण्णे, म परिण्णातसण्णे णाममेगे णो परिण्णातकम्मे, एगे परिण्णातकम्मेवि। [परिण्णातसण्णेवि, एगे णो के परिण्णातकम्मे णो परिण्णातसण्णे ]। ४६३. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कुछ पुरुष परिज्ञातकर्मा होते हैं, किन्तु परिज्ञातसंज्ञ नहीं होते। (२) कोई परिज्ञातसंज्ञ होते हैं, किन्तु परिज्ञातकर्मा नहीं होते। (३) कोई परिज्ञातकर्मा भी और परिज्ञातसंज्ञ भी होते हैं। (४) कोई न परिज्ञातकर्मा और परिज्ञातसंज्ञ होते हैं। 463. Purush (men) are of four kinds—(1) some man is parijnat-karma (knowledgeable about violence) but not parijnat-sanjna (who renounces violence), (2) some man is parijnat-sanjna but not parijnat-karma (3) some man is parijnat-karma as well as parijnat-sanjna, and (4) some man is neither parijnat-karma nor parijnat-sanjna. FFFhhhhhhhh चतुर्थ स्थान (657) Fourth Sthaan For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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